Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 95



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 159

* वे घटनायें, जिनमें महाराणा प्रताप के नाम ने प्रेरणा का काम किया :-


"महाराजा मानसिंह द्वारा महाराणा का उदाहरण देना"

एक समय जोधपुर में अंग्रेज सरकार के खिलाफ बहुत उपद्रव होने लगे, तो अंग्रेजों की एक पलटन जोधपुर भेजी गई

जोधपुर महाराजा मानसिंह ने अपने सर्दारों से सलाह की, तो सर्दारों ने अंग्रेजी फौज को प्रबल बताया

कुचामन ठाकुर ने कहा "प्रबल हुकूमत से बगावत करना ठीक नहीं होगा महाराज साहब | मेवाड़ के महाराणा प्रताप लड़े थे बादशाह से, तो पैर-पैर पर्वतों में फिरे थे"

तब महाराजा मानसिंह ने कुचामन ठाकुर के कथन के विरोध में ये दोहा फर्माया :-

"गिरपुर देस गमाड़,
भमिया पग-पग भाखरां |
सह अँजसै मेवाड़,
सह अँजसै सिसोदिया ||"

अर्थात्

अपने पर्वत, नगर और देश गमाकर पैदल ही पर्वतों में घूमते रहे, पर महाराणा ने अपने धर्म की रक्षा की, जिससे आज मेवाड़ का देश गर्व करता है व सिसोदिया जाति घमंड करती है |

"बाजीराव पेशवा का मेवाड़ आगमन"

आधे हिन्दुस्तान पर मराठाओं का ध्वज फहराने वाले बाजीराव पेशवा का जब मेवाड़ आगमन हुआ, तब महाराणा जगतसिंह (महाराणा प्रताप के प्रपौत्र) ने बाजीराव को अपने साथ सिंहासन पर बैठने के लिए आमंत्रित किया

तब बाजीराव पेशवा ने ये कहते हुए मना कर दिया कि "ये सिंहासन महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं की धरोहर है, यहाँ हम नहीं बैठ सकते हैं"

"महाराणा फतेहसिंह द्वारा दिल्ली दरबार में न जाना"

1903 ई. में लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार में सभी राजाओं के साथ मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियों को अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए उन्हें रोकने के लिए शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूरसिंह ने ठाकुर करण सिंह जोबनेर व राव गोपाल सिह खरवा के साथ मिलकर महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहठ को दी | केसरी सिंह बारहठ ने "चेतावनी रा चुंग्ट्या" नामक सौरठे रचे जिन्हें पढकर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए और दिल्ली दरबार में न जाने का निश्चय किया | वे दिल्ली आने के बावजूद समारोह में शामिल नहीं हुए |

इस रचना में केसरी सिंह बारहठ ने बार-बार महाराणा प्रताप का जिक्र किया व महाराणा फतेहसिंह के सोये हुए स्वाभिमान को जगाया |

"कर्नाटक में एकीकरण"

कर्नाटक के नेता कर्नाटक कुल पुरोहित आलूर वेंकटराव ने कर्नाटक के एकीकरण की लड़ाई में महाराणा प्रताप के आदर्श को अपनाया | इस बात को उन्होंने अपने वक्तव्यों व लेखों में प्रकट किया व लोगों में स्वतंत्रता की भावना जगाई |

"केसरी सिंह बारहठ द्वारा पुत्र का नामकरण"

मेवाड़ के क्रान्तिकारी केसरी सिंह बारहठ महाराणा प्रताप के विचारों व स्वाभिमान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने पुत्र का नाम 'प्रताप सिंह बारहठ' रख दिया |

"प्रताप पत्रिका का प्रकाशन"

अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी महाराणा प्रताप के परम भक्त थे | उन्होंने अपने राष्ट्रीय पत्र 'प्रताप' का नाम भी महाराणा प्रताप की पुण्य स्मृति में ही रखा |

* अगला भाग महाराणा प्रताप के इतिहास का अन्तिम भाग होगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

No comments:

Post a Comment