कुंवर अमरसिंह सुल्तान खां पर प्रहार करते हुए |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 140
अक्टूबर, 1582 ई.
'विजयादशमी का दिन'
"दिवेर का युद्ध"
"महाराणा प्रताप का सुल्तान खां से आमना-सामना"
महाराणा प्रताप का सामना सुल्तान खां से हुआ
सुल्तान खां हाथी पर सवार था
महाराणा प्रताप के घोड़े ने अपने पैरों से सुल्तान खां के हाथी के दांतों पर प्रहार किया
महाराणा प्रताप ने अपने भाले से सुल्तान खां के हाथी के मस्तक को फोड़ दिया
"गज पर बैठा सुल्तान खान,
राणा ने गज पर प्रहार किया |
चूर हुआ खुरसाणी अभिमान,
जब गज कुम्भ का विध्वंस किया ||"
तभी सौलंकी भृत्य पड़िहार ने सुल्तान खां के हाथी का पिछला पैर काट दिया
सुल्तान खां बच गया और उसने घोड़े पर बैठ कर युद्ध लड़ना शुरु किया
"कुंवर अमरसिंह के हाथों सुल्तान खां वध"
सुल्तान खां का सामना कुंवर अमरसिंह से हुआ
कुंवर अमरसिंह ने सुल्तान खां पर भाले से भीषण प्रहार किया
भाला इतने तेज वेग से मारा था कि सुल्तान खां के कवच, छाती व घोड़े को भेदते हुए जमीन में घुस गया और वहीं फँस गया
"टोप उड्यो बख्तर उड्यो,
सुल्तान खां रे जद भालो मारियो |
राणो अमर यूं लड्यो दिवेर में,
ज्यूं भीम लड्यो महाभारत में ||"
"महाराणा द्वारा सुल्तान खां को जल पिलाकर मानवीयता का परिचय देना"
सुल्तान खां मरने ही वाला था कि तभी वहां महाराणा प्रताप आ पहुंचे
सुल्तान खां ने कुंवर अमरसिंह को देखने की इच्छा महाराणा के सामने रखी, तो महाराणा ने किसी और राजपूत को बुलाकर सुल्तान खां से कहा कि "यही अमरसिंह है"
सुल्तान खां ने कहा कि "नहीं ये अमरसिंह नहीं है, उसी को बुलाओ"
तब महाराणा ने कुंवर अमरसिंह को बुलाया
सुल्तान खां ने कुंवर अमरसिंह के वार की सराहना की
महाराणा ने सुल्तान खां को तकलीफ में देखकर कुंवर अमरसिंह से कहा कि "ये भाला सुल्तान खां के जिस्म से निकाल लो"
कुंवर अमरसिंह ने खींचा पर भाला नहीं निकला, तो महाराणा ने कहा कि "पैर रखकर खींचो"
तब कुंवर अमरसिंह ने भाला निकाला
सुल्तान खां ने पानी मांगा, तो महाराणा प्रताप ने गंगाजल मंगवाया और अपने हाथों से पिलाया
इस तरह सुल्तान खां को मोक्ष प्राप्त हुआ
* अगले भाग में दिवेर विजय के परिणाम व महाराणा प्रताप की कुम्भलगढ़ विजय के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
जय हो महाराणा की
ReplyDelete