* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 130
15 नवम्बर, 1579 ई.
"शाहबाज खां का तीसरा मेवाड़ अभियान"
* अकबर अपनी जिन्दगी में आखिरी बार ख्वाजा साहब की दरगाह अजमेर गया
जब वह सांभर झील किनारे पहुंचा, तब उसने शाहबाज खां को तीसरी बार मेवाड़ भेजा
(दूसरी बार शाहबाज खां के असफल होने पर अकबर ने उसे नहीं मारा, क्योंकि अकबर मन ही मन जानता था कि शाहबाज खां ने दूसरे सिपहसालारों से ज्यादा प्रभावित किया है)
* इस बार शाहबाज खां 8 महीने तक मेवाड़ में ही रहा और महाराणा प्रताप को पकड़ने या मारने के हरसम्भव प्रयास किए
* कई राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए और अब महाराणा प्रताप के पास मुट्ठी भर सेना बची
* महाराणा प्रताप ने गोडवाड़ सूंधा की पहाड़ियों में प्रवेश किया, जहां देवल-पड़िहारों का राज था
ठाकुर रायधवल देवल ने महाराणा प्रताप का जोरदार स्वागत किया और अपनी पुत्री का विवाह महाराणा से करवा दिया
महाराणा प्रताप ने सूंधा में एक बावड़ी व बगीचा बनवाया और ठाकुर रायधवल देवल को "राणा" की उपाधि दी
* शाहबाज खां ने जावर, छप्पन, वागड़ आदि इलाकों पर शाही थाने तैनात किये
* सैनिकों के अभाव में महाराणा प्रताप ने शाही थाने नहीं उठाए
* महाराणा प्रताप ढोलन गांव में पधारे व ढोलन को 3 वर्षों (1579 ई. से 1582 ई.) तक मुख्य केन्द्र बनाए रखा
* शाहबाज खां ने महाराणा प्रताप व मेवाड़ पर कब्जा करने के लिए अपने सेनापतियों को भेजा
> कुम्भलगढ़ के पतन के बाद मुगलों ने धरमेती और गोगुन्दा पर भी अधिकार कर लिया
> मुहम्मद खां ने उदयपुर पर अधिकार किया
> अमीशाह नामक मुगल शहजादे ने चावण्ड व अोगणा पानरवा के मध्यवर्ती क्षेत्र में पड़ाव डालकर यहां के भीलों से महाराणा को मिलने वाली मदद रोक दी
> फरीद खां नामक मुगल सेनापति ने छप्पन पर हमला किया व दक्षिण की तरफ से चावण्ड को घेर लिया
इस तरह महाराणा प्रताप चारों तरफ से शत्रुओं से घिर गए
* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा फरीद खां की मौत व शाहबाज खां के आगरा लौटने के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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