* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 139
अक्टूबर, 1582 ई.
'विजयादशमी का दिन'
"दिवेर का युद्ध"
* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है
"प्रताप के शत्रु जब यह कल्पना कर रहे थे कि प्रताप रेगिस्तान में होकर पीछे हटने की तैयारी में है, उस वक्त प्रताप ने शाहबाज खां के ही शिविर दिवेर में जाकर सबको चौंका दिया और वहां के एक-एक सैनिक के टुकड़े-टुकड़े कर दिए"
* "मेवाड़ का मैराथन"
> कर्नल जेम्स टॉड ने जहां हल्दीघाटी युद्ध को 'मेवाड़ की थर्मोपल्ली' कहा, वहीं टॉड ने दिवेर युद्ध को 'मेवाड़ का मैराथन' कहा
> टॉड ने ये उदाहरण बड़ी चतुरता से दिया है, जिसके पीछे का इतिहास कुछ इस तरह है :-
यूनान के एक प्राचीन नगर का नाम मैराथन है, जहां 491 ई. पूर्व एक भयंकर युद्ध हुआ था | यह युद्ध ईरानियों की एक भारी सेना व यूनानियों की छोटी सी सेना के बीच हुआ था | ईरानियों की फौज लगभग 20,000 थी | ईरानी पूरे यूनान पर आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे | यूनानियों ने आसपास की पहाड़ियों पर अपने सैनिक तैनात कर दिए | इस युद्ध में यूनानियों ने ऐसा जोर दिखाया कि ईरानियों के 6,400 सैनिक मारे गए, वहीं मात्र 192 यूनानी काम आए | इस शानदार विजय के बाद मैराथन का मैदान संसार भर में प्रसिद्ध हो गया |
"विजयादशमी के मौके को,
राणा ने तलवारें खींची |
चढ़ दिवेर की घाटी को,
मुगलों के रक्त से सींची ||"
* मनकियावास गांव -
महाराणा प्रताप ने दिवेर के युद्ध की रणनीति गोमती चौराहा से 3 किमी. व आमेट से 15 किमी. दूर मनकियावास के जंगलों में तैयार की | जंगली बिलावों की अधिकता के कारण इस गांव का नाम मनकियावास पड़ा | आत्मसुरक्षा के साथ ही आमेट, देवगढ़, रुपनगर व आसपास के ठिकानों से मदद पाने की नजर से भी यह स्थान उपयुक्त था | यहां से दिवेर की दूरी भी कम है | यहां बरगद के पेड़ के नीचे स्थित गुफा में रहते हुए महाराणा प्रताप गुप्त सुचनाएं एकत्रित करते थे |
मनकियावास गांव में स्थित महाराणा प्रताप की गुफा |
* दिवेर युद्ध के कुछ वर्षों बाद लिखे गए अमरकाव्य नामक ग्रन्थ के अनुसार दिवेर युद्ध से पहले शकुनी नाम के किसी ज्योतिषि ने महाराणा प्रताप से कहा कि "प्रताप के भाले पर देवी अवस्थित है, अब प्रताप के हाथों शत्रु की पराजय निश्चित है"
* दिवेर राजसमन्द जिले में उदयपुर-अजमेर मार्ग पर स्थित है, जहां शाहबाज खां ने सुल्तान खां की कमान में बहुत बड़ा मुगल थाना लगा रखा था
इस युद्ध में मुगल फौज का नेतृत्व सुल्तान खां ने किया
सुल्तान खां अकबर का रिश्तेदार (संभवत: काका या मामा) था
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ी सेना का नेतृत्व किया, लेकिन कुंवर अमरसिंह व भामाशाह को सेनापति बनाया
आमेट, चूडामण समेत कुल 14 शाही थानों व उनके थानेदारों ने मुगल फौज का साथ दिया
* अगले भाग में कुंवर अमरसिंह द्वारा सुल्तान खां वध व दिवेर विजय के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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