* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 116
1577 ई.
"महाराणा प्रताप द्वारा दी गई जागीरें"
> महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाने वाले अपने मामा मानसिंह सोनगरा के पुत्र अमरसिंह सोनगरा को भीण्डर की जागीर प्रदान की
> महाराणा प्रताप ने बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ के भाई श्यामदास राठौड़ को गोगावास व हरिदास राठौड़ को देलाणे की जागीर दी
> महाराणा प्रताप द्वारा 23 मार्च, 1577 ई. को जारी एक ताम्रपत्र से प्राप्त जानकारी :-
महाराजाधिराज महाराणा प्रताप ने ओडा गांव पुरोहित काशी को दान दिया | यह गांव पहले महाराणा उदयसिंह ने दान किया था, परन्तु गोगुन्दा की लड़ाई में उसका ताम्रपत्र खो गया, जिससे यह नया कर दिया गया | पंचोली जेता ने इसे लिखा | पुरोहित काशी के पूर्वज सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पुरोहित थे |
"महाराणा प्रताप द्वारा जारी पत्र"
> ये पत्र महाराणा प्रताप द्वारा आचार्य बलभद्र को जारी किया गया था, जिनका कोई सम्बन्धी छापामार लड़ाईयों में मेवाड़ की तरफ से लड़ते हुए काम आया था
> ये पत्र संवत् 1634 (1577 ई.) में पौष शुक्ला 10 को भामाशाह कावडिया द्वारा लिखा गया व महाराणा प्रताप द्वारा जारी किया गया
> पत्र में सबसे ऊपर 'श्री रामोजयती', बायीं तरफ 'श्री गुणेस प्रसादातु' व दायीं तरफ 'श्री एकलिंग प्रसादातु' लिखा है
> पत्र पर भाले का चिन्ह अंकित है
> पत्र 7 पंक्तियों में लिखा गया है, जो कुछ इस तरह है :-
"स्वस्ति श्री कटक दल का डेरा सुयाने महाराजाधिराज महाराणा श्री प्रतावसींघ जी आदेसातु आचारज बाबा बलभद्र कस्य | अप्रचे. वेणीदास तो जगडा में काम आय्यो ने थे कइी चंता करो मती रुपनाथ री वान्नी रेवेगा | एेक दाण रुपनाथ ने पेतावा भेज जो थे पी जमा वान्नी रावजो | रुपनाथ रे बाप श्री हजुर हे थे कइी चंता करो मती | दुवे थी मुव साहा भामा संमत १६३४ को पोस सुद दस"
अर्थात्
"वेणीदास तो यहाँ युद्ध में मारा गया है, उसकी चिन्ता मत करना | वेणीदास के पुत्र रुपनाथ की देखभाल रखी जाएगी, एक बार उसे यहाँ भेज दो | अब रुपनाथ के पिता श्री हजूर (महाराणा प्रताप) हैं"
* अगले भाग में ईडर के दूसरे युद्ध के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
ये पत्र क्या खोजा गया है क्या , या इसाक उल्लेख किसीं पुस्तक मे है.
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