Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 56



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 120

अक्टूबर, 1577 ई.

"मोही का युद्ध"


महाराणा प्रताप ने सबसे बड़े मुगल थाने मोही पर आक्रमण किया, जहां 3,000 मुगल घुड़सवार तैनात थे

मोही मुगल थाने का मुख्तार हल्दीघाटी युद्ध में भाग लेने वाला मुजाहिद बेग था

मोही में तैनात गाजी खान बदख्शी, सुभान कुली तुर्क, शरीफ खान अतका भाग निकले

आमेर का मानसिंह कछवाहा इस समय मोही के पास ही था | मानसिंह हमले की खबर मिलते ही मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों में भाग निकला |

मोही का थानेदार किसानों से शाही फौज के लिए खेती करवाता था

महाराणा प्रताप व उनके साथी मोही में फसलें नष्ट कर रहे थे, ताकि मुगलों को रसद सामग्री ना मिल सके

मुजाहिद बेग को इसकी सूचना मिली तो वो शाही फौज के साथ फौरन महाराणा से मुकाबला करने पहुंचा

मोही का ये युद्ध खेतों में लड़ा गया

आखिरकार मुजाहिद बेग मारा गया

सैकड़ों मुगल मारे गए व बहुत से भाग निकले

महाराणा प्रताप ने मोही पर अधिकार कर लिया

अबुल फजल लिखता है "राणा की कमान में उस इलाके के राजपूतों ने मोही पर हमला कर फसलें वगैरह बर्बाद करना शुरु कर दिया | इस वक्त कुंवर मानसिंह कछवाहा मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों में चला गया | मोही के थानेदार मुजाहिद बेग को खबर मिली, तो वह फौरन बिना जरुरी हथियार लिए ही फौजी आदमियों समेत खेतों की तरफ दौड़ा | मुजाहिद बेग ने रुस्तम जैसी बहादुरी दिखाई और शहीद हुआ"

मुजाहिद बेग जैसे खास सिपहसालार की मौत से शाही दरबार में सनसनी फैल गई और मोही गांव के आसपास के मुगल थानेदार बिना लड़े ही थाने छोड़कर भाग निकले

(मोही का युद्ध समाप्त)

* अंग्रेज इतिहासकार हैरिस लिखता है

"यद्यपि आगरे का नया शहर बसाने में अकबर का ध्यान लग रहा था, तो भी राज्य की वह तृषा, जो कि उसकी तख्तनशीनी के शुरु के सालों में नज़र आई थी, न बुझी | हिन्दुस्तान के एक राजा का हाल सुनकर, जो कि अकलमन्दी और दिलेरी के वास्ते मशहूर था | जिसका इलाका बादशाह की राजधानी से सिर्फ बारह मंजिल के फासिले पर था, उसको बादशाह ने फौरन फ़तह करने का इरादा किया | खासकर इस वजह से कि वह इलाका उसके मौरुसी राज्य और नये फ़तह किए गए मुल्क के बीच में था | इस राजा का नाम राणा प्रताप था | राणा का खिताब उसके खानदान के सब राजाओं को हिन्दुस्तान के पुराने दस्तूर के मुवाफ़िक दिया जाता था | उसकी मदद करने वाला अगर कोई दूसरा राजा होता, तो वह अपने मुल्क चित्तौड़ की आज़ादी फिर हासिल कर लेता | तो भी उसने बड़े दरजे की कोशिश की, जो कि इस मुल्क की तवारिख में हमेशा याद रहेगी"

* अगले भाग से कुम्भलगढ़ के युद्ध के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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