* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 155
1591 ई.
* महाराणा प्रताप के सहयोगी ताराचन्द कावड़िया (भामाशाह के भाई) का देहान्त
ताराचन्द ने सादड़ी के बाहर एक बारादरी और बावड़ी बनवाई थी, उसके पास ही ताराचन्द, उनकी 4 पत्नियाँ, 1 खवास, 6 गायनियाँ, 1 गवैया और उस गवैये की पत्नी की मूर्तियाँ पत्थरों पर खुदी हुई हैं |
* इसी वर्ष अकबर ने सिन्ध व उड़ीसा पर विजय प्राप्त की
"राजनगर का युद्ध"
दलेल खां नाम के एक मुगल सिपहसालार ने फौज समेत मेवाड़ पर चढाई की
महाराणा प्रताप ने बदनोर के कुंवर मनमनदास राठौड़ को फौज समेत लड़ने भेजा
मनमनदास जी की उम्र इस समय 34 वर्ष की थी
कुंवर मनमनदास वीर जयमल राठौड़ के पौत्र व ठाकुर मुकुन्ददास राठौड़ के पुत्र थे
राजनगर के पास दोनों फौजों के बीच लड़ाई हुई
दलेल खां हाथी पर सवार था व कुंवर मनमनदास 'चन्द्रभाण' नाम के घोड़े पर सवार थे
कुंवर मनमनदास ने भाला फेंका, जिससे दलेल खां हाथी से गिरकर मर गया
मुगल फौज के पांव उखड़ गए और कुंवर मनमनदास विजयी होकर महाराणा प्रताप के समक्ष प्रस्तुत हुए, तो महाराणा ने कहा कि "तुम्हारा नक्कारा हमेशा हरावल में बजा करेगा"
"कनेचण का युद्ध"
दलेल खां की मौत का बदला लेने के लिए उसके भाई दिलावर खां ने मेवाड़ पर चढाई की
इस बार महाराणा प्रताप ने कुंवर मनमनदास राठौड़ के पुत्रों भंवर दलपति सिंह व भंवर परशुराम को फौज समेत भेजा
कनेचण नामक स्थान पर लड़ाई हुई, जिसमें ये दोनों भाई वीरगति को प्राप्त हुए | दोनों के सिर कट जाने के बाद इनके घोड़े इनके धड़ को लेकर दलपति सिंह के ससुराल शाहपुरा के समीप तसवारिया नाम के गांव में पहुंचे, जहां इनका अन्तिम संस्कार हुआ |
दलपति सिंह की सौलंकिनी रानी उनके साथ सती हुई | दलपति सिंह के वंशज सलूम्बर के छरल्या गांव में हैं |
परशुराम जी अविवाहित थे |
दोनों भाईयों की छतरियां तसवारिया गांव में अब तक मौजूद हैं |
महाराणा प्रताप ने मनमनदास जी के एक पुत्र देवीदास जी को कनेचण की जागीर प्रदान की |
* अगले भाग में महाराज शक्तिसिंह जी, ईडर राव, बांसवाड़ा रावत के देहान्त व महाराणा प्रताप के जख्मी होने के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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