* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 127
1578 ई.
"डूंगरपुर-बांसवाड़ा की सम्मिलित सेना पर रावत भाण सारंगदेवोत की विजय"
डूंगरपुर के रावल आसकरण व बांसवाड़ा के रावल प्रताप सिंह बादशाही मातहती कुबूल कर चुके थे
डूंगरपुर रावल आसकरण का पुत्र साहसमल इस बात से दुखी होकर महाराणा प्रताप के पास आया और महाराणा से विनती की कि वे डूंगरपुर पर हमला करें | साथ ही इस कार्य के लिए साहसमल ने महाराणा प्रताप को 4000 मुद्राएँ भी भेंट की |
महाराणा प्रताप ने साहसमल से कहा कि "अगर आप हमारे पास ना भी आते तब भी हम डूंगरपुर-बांसवाड़ा पर हमले जरुर करते | हमें यदि मुगल सल्तनत से बैर रखना है, तो पड़ौसी राज्यों को अपने अधीन कर मेवाड़ को सशक्त बनाना ही होगा"
डूंगरपुर-बांसवाड़ा को बादशाही मातहती कुबूल करने का खामियाजा भुगतना पड़ा
महाराणा प्रताप ने कानोड़ के रावत भाण सारंगदेवोत को फौज समेत भेजा
(कुछ इतिहासकारों ने रावत भाण शक्तावत का नाम इससे जोड़ दिया, जो कि शक्तिसिंह जी के पुत्र थे, पर ये सही नहीं है, क्योंकि महाराणा प्रताप के समय के ही सूरखण्ड के शिलालेख में रावत भाण सारंगदेवोत का नाम लिखा है)
रावत भाण सारंगदेवोत हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाने वाले रावत नैतसिंह सारंगदेवोत के पुत्र थे
सोम नदी के किनारे इनका सामना डूंगरपुर-बांसवाड़ा की सम्मिलित सेना से हुआ
रावत भाण सारंगदेवोत के काका रणसिंह सारंगदेवोत व पुत्र वीरगति को प्राप्त हुए
रावत भाण सारंगदेवोत बुरी तरह जख्मी हुए, पर फिर भी वे वागडिये चौहानों को पराजित करने में सफल रहे
रावत भाण सारंगदेवोत की विजय हुई, पर डूंगरपुर-बांसवाड़ा के शासकों ने महाराणा प्रताप की ताबेदारी (अधीनता) स्वीकार नहीं की
(डूंगरपुर-बांसवाड़ा पर महाराणा प्रताप के हमले की जानकारी सूरखण्ड के शिलालेख से मिलती है)
"महाराणा प्रताप की बांसवाड़ा पर निर्णायक विजय"
इसी वर्ष महाराणा प्रताप ने फौज समेत बांसवाड़ा पर हमला किया और विजय प्राप्त की
बांसवाड़ा के रावल प्रताप सिंह ने महाराणा प्रताप की अधीनता स्वीकार की
* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा स्वयं डूंगरपुर पर आक्रमण के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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