Saturday, 23 September 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 77



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 141

1582 ई.

"दिवेर विजय का परिणाम"


> सुल्तान खां के मरने की खबर सुनकर कोशीथल वगैरह थानों के मुगल बिना लड़े ही भाग निकले

> दिवेर का युद्ध एक निर्णायक युद्ध रहा

> विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने दिवेर के युद्ध में एेतिहासिक विजय प्राप्त की

दिवेर विजय की ख्याति चारों ओर फैल गई

> दिवेर युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने 15 गाँव व 1000 गायें दान कीं

> इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने पूंचौली गौरा को प्रधान नियुक्त किया

> दिवेर के मेवा का मथारा नामक स्थान पर महाराणा प्रताप की दिवेर विजय का भव्य स्मारक बना हुआ है
दिवेर विजय स्मारक

1583 ई.

"कुम्भलगढ़ का युद्ध"


> 1578 ई. में शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर किला अब्दुल्ला खां को सौंप दिया था

> दिवेर के आगे कुम्भलगढ़ के पहाड़ शुरु होते हैं

इसी घाटी के मुहाने पर दूसरी मुगल चौकी थी, जिसके मुख्तार को महाराणा प्रताप ने अपने हाथों से मारा

> हमीरसर तालाब/झील पर महाराणा प्रताप का अधिकार :-
हमीरसर तालाब

ये झील महाराणा हम्मीर ने 1330 ई. में बनवाई | ये झील कुम्भलगढ़ के समीप स्थित है | इसे हमीरपाल या हमेरपाल झील भी कहते हैं |

महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ के समीप स्थित हमीरसर तालाब पर मुगल चौकी हटाकर कब्जा किया

> अब महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर चढ़ाई की

कुम्भलगढ़ दुर्ग में अब्दुल्ला खां अपनी फौज के साथ तैनात था

युद्ध की शुरुआत में ही अब्दुल्ला खां मारा गया

थोड़ी देर लड़ने के बाद मुगल फौज महाराणा की दहशत से किला छोड़कर भाग निकली

महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर मुगलीय परचम हटा कर मेवाड़ी ध्वज फहराया
कुम्भलगढ़ दुर्ग

> समूचे राजपूताने में महाराणा की वीरता की प्रशंसा हुई कि जिस कुम्भलगढ़ दुर्ग को फतह करने के लिए मुगल सिपहसालार शाहबाज खां को 20 हजार की फौज व भारी तोपखाने के साथ 6 महीने तक घेरा डालना पड़ा, उसी दुर्ग पर महाराणा प्रताप ने बिना तोपखाने व महज तीन-चार हजार की फौज से बिना घेरा डाले ऐतिहासिक विजय प्राप्त की

* अगले भाग में मांडल के युद्ध के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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