Saturday, 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 74



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 138

1581 ई.

"अकबर की काबुल विजय"


अकबर ने काबुल पर फतह पाई | इस विजय से अकबर को 1400 हाथी मिले |

"कुंवर अमरसिंह का विवाह"

साहबकंवर जी से कुंवर अमरसिंह का विवाह हुआ

साहबकंवर जी आगे चलकर मेवाड़ की महारानी बनीं

1582 ई.

"जैन आचार्य जिनभद्र सूरी"

> अकबर की जैन आचार्य जिनभद्र सूरी से भेंट हुई

अकबर ने हजारों शिकार किये थे लेकिन आचार्य से प्रभावित होकर उसने काफी हद तक शिकार करना बन्द किया

अकबर ने आचार्य को "जगत गुरु" की उपाधि दी

> महाराणा प्रताप को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने आचार्य जी को एक पत्र लिखा

इस पत्र में महाराणा ने लिखा कि आचार्य जी ने अकबर को उपदेश देकर जीवहिंसा रुकवाकर बड़ा उपकार किया है

पत्र में महाराणा प्रताप ने आचार्य जी से उदयपुर पधारने का भी आग्रह किया

"अकबर द्वारा दीन-ए-इलाही धर्म की स्थापना"

अकबर ने दीन-ए-इलाही धर्म की स्थापना की

प्रमुख लोगों में से इस धर्म के मात्र 18 अनुयायी बने, जिनमें बीरबल एकमात्र हिन्दु था

"मेवाड़ को स्वतंत्र करने की मुहिम"

इस समय चित्तौड़गढ़, मांडलगढ़, कुम्भलगढ़, भीमगढ़, मांडल, वागड़, दिवेर, उदयपुर, ओवरां, जावर, मोही, मदारिया, आमेट, देवगढ़, पिण्डवाड़ा, छप्पन, जहांजपुर, देसूरी, हमीरसर, गोगुन्दा, खेरवाड़ा, बिजौलिया, आसपुर समेत लगभग सम्पूर्ण मेवाड़ पर मुगल बादशाह अकबर का आधिपत्य स्थापित हो चुका था

महाराणा प्रताप ने 3 वर्षों (1579-82 ई.) तक मुगलों से मुकाबला तो किया, लेकिन इस दौरान सेना के अभाव में कोई बड़ी जंग नहीं हुई

महाराणा प्रताप ने इन 3 वर्षों तक ढोलन गांव को मुख्य केन्द्र बनाए रखा

इसके बाद महाराणा ने भामाशाह द्वारा दिये गए धन की सहायता से अपनी भरपूर ताकत से मेवाड़ को स्वतन्त्र करने की मुहिम शुरु की

इस पवित्र कार्य का शुभारम्भ करने के लिए महाराणा प्रताप ने विजयादशमी का दिन चुना

* अगले भाग में दिवेर युद्ध के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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