Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 73



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 137

1581 ई.

"मृगेश्वर का ताम्रपत्र"


> महाराणा प्रताप ने मारवाड़ के मृगेश्वर नाम के एक गांव में तैनात मुगलों को मार-भगाकर अधिकार किया व यह गांव उसी समय ताम्रपत्र जारी करके दान कर दिया

> महाराणा प्रताप द्वारा जारी व भामाशाह द्वारा लिखित इस ताम्रपत्र में कुल 7 पंक्तियाँ अंकित हैं

> यह ताम्रपत्र फाल्गुन शुक्ला 5 (शनिवार) संवत् 1638 (1581 ई.) को जारी किया गया था

> ताम्रपत्र के अनुसार महाराणा प्रताप के आदेश से कान्हा सांदू नामक चारण कवि को मृगेश्वर नामक गांव प्रदान किया गया

> मृगेश्वर गांव गोडवाड़ (पाली-मारवाड़) क्षेत्र में स्थित है

> कान्हा सांदू चित्तौड़ के निकट हुम्प खेड़ी नामक गांव के निवासी थे

> कान्हा सांदू हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ थे व इस युद्ध का वर्णन इन्होंने अपने एक गीत में भी किया है

"कवि पानिपराव का बलिदान व केसरिया पगड़ी"

> इन्हीं दिनों एक चारण कवि पानिपराव मुगल बादशाह अकबर के दरबार में उपस्थित हुए

पानिपराव ने अपनी पगड़ी उतारी और उसे अपने हाथ में पकड़कर दूसरे हाथ से अकबर को सलाम किया

> अकबर ने इस गुस्ताखी का कारण पूछा तो पानिपराव ने कहा

"हुजूर, ये पगड़ी मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने मेरे दोहों से प्रसन्न होकर मेरे सिर पर रखी है, जब उनका सिर आपके आगे अब तक नहीं झुका, तो भला मैं उनकी पगड़ी को कैसे लज्जित कर सकता हूँ"

> पानिपराव ने इतना कहकर भरे दरबार में खड़े राजपूत राजाओं को दो दोहे सुनाए

"कुलहीन भये, कुल मलेच्छ मिले, अपकीर्ति सुनात दिसांन दिसांनहिं |
देन लगे नवरोज नये, तजि नाम प्रथा सुकहावत खांनहिं ||

छोत लगी जु अकबर की, जितहि तित मेटि सके न महांनहिं |
पानिप राव कहे सब राजन, बन्दहु रान प्रताप की पांनहिं ||"

अर्थात्

"जो अपने वंश गौरव को विस्मृत करके मलेच्छ वंश में विलीन हो रहे हैं, जिसके कारण सभी दिशाओं में आपकी अपकीर्ति सुनाई दे रही है | वे तो नित्य नये प्रकार से नवरोजे दे रहे हैं और यहां तक कि वे अपने नाम की गौरवशाली परम्परा छोडकर स्वयं को खां कहलाने में गौरव समझ रहे हैं | अकबर के दुष्प्रभाव की छाया जहां तक दृष्टिगोचर हो रही है, जिसे बड़े-बड़े राजागण भी नहीं मिटा सके हैं | ऐसे समय में कवि पानिपराव सभी राजाओं से आव्हान करता है कि वे महाराणा प्रताप के पदत्राणों की पूजा करते हुए उनके मार्ग का अनुसरण करें"

> कवि पानिपराव को महाराणा प्रताप के प्रति इस असीम श्रद्धा की कीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पडी, क्योंकि अकबर ने उसी समय पानिपराव को मृत्युदण्ड दिया

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

4 comments:

  1. Hkm बहुत अच्छी पोस्ट है पर कवि पानीप राव को यहाँ चारण जाती से बताये गए है जो राव थे... इसमे त्रुटि है hkm

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    1. Hkm गौर फरमाए

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    2. पानिप राव चावंड के ही थे और राव राजपूत के केलावत गौत्र के सिरदार थे। हुक़्म इसे सही करे।

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  2. ओर अकबर दरबार मे जाने का विशेष कारण थे, मेरे पास पूरी जानकारी है paniprao केलावत की। या आप राव सिरदार नाम का ब्लॉग मेसे पूरी जानकारी ले सकते हो

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