Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 84


विश्वासघाती किसान को मृत्युदण्ड देते महाराणा प्रताप

* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 148

1585 ई.

"आदेशों के उल्लंघन पर किसान को मृत्युदण्ड"

> ऊंठाळे की शाही फौज के किसी थानेदार ने वहां के एक विश्वासघाती किसान से किसी खास किस्म की तर्कारी बुवाई थी

किसान ने महाराणा प्रताप के आदेश का उल्लंघन किया

कविराज श्यामलदास लिखते हैं "महाराणा प्रताप ने रात के वक्त शाही फौज के बीच में जाकर उस किसान का सिर काट दिया | फौजी आदमियों के हमला करने पर महाराणा प्रताप उनसे लड़ते-भिड़ते पहाड़ियों में चले गए"

> इसी तरह की एक और घटना में महाराणा प्रताप ने मुगल फौज को फसल उगा कर देने वाले एक विश्वासघाती किसान को मृत्युदण्ड दिया व उसके शव को पेड़ पर लटका दिया गया

इन सख्त फैसलों के बाद महाराणा प्रताप के आदेशों का उल्लंघन नहीं हुआ

> कर्नल जेम्स टॉड लिखता है

"प्रताप ने मेवाड़ को रेगिस्तान (वीरान) बना दिया | जो भी समतल भूमि पर बसता, उसको प्रताप ने तलवार पर चढ़ा दिया | एक भयानक, परन्तु अनिवार्य बलिदान"

17 सितम्बर, 1585 ई.

"जगन्नाथ कछवाहा व महाराणा के बीच छापामार लड़ाईयां"

> जगन्नाथ कछवाहा ने महाराणा प्रताप के निवास स्थान चावण्ड पर हमला किया  व चावण्ड को लूट लिया, पर महाराणा प्रताप बच निकले

> महाराणा प्रताप अपने परिवार समेत चावण्ड से कुम्भलगढ़ पधारे व कुम्भलगढ़ के पास एक शाही थाने पर हमला कर दिया

सैयद राजू को इस हमले की खबर मिली, तो वो मांडलगढ़ से निकलकर महाराणा के पीछे गया

जगन्नाथ कछवाहा भी कुम्भलगढ़ पहुंचा, पर तब तक महाराणा प्रताप वहां से निकल चुके थे

> जगन्नाथ कछवाहा व सैयद राजू की फौजें मिल गईं व महाराणा प्रताप की खोज में जुट गईं

"महाराणा प्रताप की चित्तौड़ में कार्यवाही"

> महाराणा प्रताप ने चित्तौड़ की पहाड़ियों में प्रवेश किया

शाही फौज ने चित्तौड़ की पहाड़ियों में प्रवेश नहीं किया, हालांकि वे जानते थे कि महाराणा प्रताप चित्तौड़ में ही हैं | शाही फौज ने महाराणा के बाहर निकलने तक इन्तजार किया |

> चित्तौड़ पर इस वक्त मुगलों का अधिकार था और अकबर ने 1568 ई. में चित्तौड़ का नाम 'अकबराबाद' कर दिया था

> फिर भी महाराणा प्रताप ने वहां आम लोगों में एक हुक्म जारी करवा दिया कि "जो कोई भी चित्तौड़ को अकबराबाद के नाम से पुकारेगा, उसे मृत्युदण्ड दिया जावेगा"

> चित्तौड़ की प्रजा ने भी अकबराबाद नाम स्वीकार नहीं किया

> कुछ समय बाद चित्तौड़ की पहाड़ियों से निकलकर महाराणा प्रताप ने एक शाही थाने पर हमला कर दिया, जिससे सैयद राजू और जगन्नाथ कछवाहा की फौज का ध्यान फिर से महाराणा की तरफ गया

8 अक्टूबर, 1585 ई.

* अबुल फजल लिखता है "जगन्नाथ कछवाहा ने एक दफ़ा फिर राणा के डेरे पर हमला किया, पर राणा बच निकला | शाही फौज राणा के गुजरात जाने की अफवाह सुनते ही गुजरात के लिए निकली | बीच रास्ते में उन्हें खबर मिली की राणा ने डूंगरपुर के रावल साहसमल के साथ मिलकर बगावत कर दी | शाही फौज डूंगरपुर पहुंची, जहां राणा तो नहीं मिला, पर गद्दारी के एवज़ में साहसमल से भारी जुर्माना वसूला गया"

* महाराणा प्रताप ने गोडवाड़ में प्रवेश किया

* जगन्नाथ कछवाहा को रास्ते में जो भी मिलता, उससे वह महाराणा प्रताप के बारे में जरुर पूछता

आखिरकार 2 वर्षों की नाकामयाबी से थक-हारकर जगन्नाथ कछवाहा मेवाड़ में कईं थाने मुकर्रर कर कश्मीर अभियान में चला गया

(1608 ई. में जगन्नाथ कछवाहा महाराणा अमरसिंह के हमले से मारा गया, जिसका हाल महाराणा अमरसिंह के इतिहास में लिखा जाएगा)

* अगले भाग में महाराणा प्रताप के विजय अभियान व 36 मुगल थानों पर विजय के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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