* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 154
"सूरत की लूट"
महाराणा प्रताप ने सूरत की मुगल छावनियों में लूटमार की और वहां के मुगल सूबेदार से लड़ाई की
महाराणा प्रताप के साथ कुंवर अमरसिंह, भाई शक्तिसिंह व शक्तिसिंह जी के कुछ पुत्र, सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत, कोठारिया रावत पृथ्वीराज चौहान वगैरह बहुत से सर्दार थे
सूबेदार हाथी पर सवार था
महाराणा प्रताप ने भाला फेंका, जिससे सूबेदार तो कत्ल हुआ, पर भाला हाथी के शरीर में घुस गया, जो खींचने पर भी नहीं निकला
तभी कोठारिया के रावत पृथ्वीराज चौहान ने महाराणा का भाला निकाल दिया, इस घटना से प्रसन्न होकर महाराणा प्रताप ने कोठारिया रावत को जड़ाऊ सिरपाव दिया | इसके बाद हर विजयादशमी को महाराणा द्वारा कोठारिया रावत को जड़ाऊ सिरपाव दिया गया |
इस घटना को बांकीदास री ख्यात में कुछ इस तरह लिखा गया है -
"सहर सूरत में राणो प्रताप गोसरे हियो विखा में उमरावा कुवरा समेत सूरत रा सूबेदार नू मार घोड़ा चलाया राणा री हाथ री बरछी सू सूबेदार रा अग रही कोठारिया रै राव जायनै आणी ऊ दिन दसरावा रो गहणा समेत सिरपाव राणोजी कोठारिया रा धणी नू दियो | जिणसू हर दसरावै राणोजी दसरावा रो सिरपाव गहणा समेत कोठारिया रा राव नू वगसै"
1589 ई.
* आमेर के राजा भगवानदास कछवाहा की मृत्यु हुई
राजा मानसिंह आमेर का शासक बना
* इसी वर्ष अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन का देहान्त हुआ
अबुल फजल लिखता है "उस जैसा गवैया एक हजार सालों में भी नहीं हुआ"
* इसी वर्ष अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल की मृत्यु हुई
* इसी वर्ष अकबर के पौत्र व जहांगीर के पुत्र परवेज़ का जन्म हुआ, जिसने बाद में महाराणा अमरसिंह से लड़ाईंया लड़ीं
1590 ई.
* महाराणा प्रताप के साथ जंगलों में रहकर उनके हर सुख-दुख में साथ रहने वाली मेवाड़ की महारानी अजबदे बाई का देहान्त
"महाराणा प्रताप व शत्रुसाल झाला में अनबन"
महाराणा प्रताप के बहनोई देलवाड़ा के मानसिंह झाला का पुत्र शत्रुसाल उग्र स्वभाव का था और एक भोजन समारोह में उसकी अपने मामा महाराणा प्रताप से तकरार हो गई
शत्रुसाल उठ कर जाने लगा कि तभी महाराणा ने उसके अंगरखे का दामन पकड़कर रोकना चाहा
शत्रुसाल ने क्रोध में आकर पेशकब्ज़ से अपने अंगरखे का दामन काट डाला
शत्रुसाल ने महाराणा से कहा कि "आज के बाद मैं सिसोदियों के यहां नौकरी न करुंगा"
महाराणा प्रताप ने भी कहा कि "आज के बाद मैं भी शत्रुसाल नाम के किसी बन्दे को अपने राज में न रखूंगा"
बहन का बेटा होने की खातिर महाराणा प्रताप ने शत्रुसाल को क्षमा किया
लेकिन महाराणा प्रताप ने शत्रुसाल झाला की देलवाड़ा की जागीर बदनोर के कुंवर मनमनदास राठौड़ को दे दी | मनमनदास राठौड़ जयमल राठौड़ के पौत्र व मुकुन्ददास राठौड़ के पुत्र थे | महाराणा प्रताप ने ये जागीर मनमनदास राठौड़ को उनके पिता के जीवित रहते दी थी |
(1614 ई. में शत्रुसाल झाला मेवाड़ की तरफ से लड़ते हुए गोगुन्दा में वीरगति को प्राप्त हुए)
* अगले भाग में राजनगर व कनेचण के युद्धों के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
चारण कवि के दोहे में कोठारिया राव लिखा हुआ और आप रावत लिख रहे है,खास वजह?
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