Saturday, 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 72



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 136

1580 ई.

"महाराणा प्रताप की बहन व बहनोई का देहान्त"


> मारवाड़ के राव चन्द्रसेन (महाराणा प्रताप के मित्र व बहनोई) की एक रानी सूरजदेवी थीं, जो कि महाराणा प्रताप की बहन थीं

रानी सूरजदेवी जी इन्हीं दिनों मथुरा यात्रा के लिए पधारीं, जहाँ उनका देहान्त हो गया

> राव चन्द्रसेन ने अजमेर के पर्वतीय भाग में लूटमार की

अकबर ने पयन्दा मुहम्मद खां, सैयद हाशिम, सैयद कासिम को भेजा, पर राव चन्द्रसेन पकड़ में नहीं आए

11 जनवरी, 1581 ई.

> भाद्राजूण में राव चन्द्रसेन के सामन्त वेरसल राठौड़ ने खाने में ज़हर मिलाकर राव चन्द्रसेन की हत्या कर दी

39 वर्ष की अल्पायु में राव चन्द्रसेन विश्वासघात की भेंट चढ़ गए

एक शानदार व यशस्वी जीवन का अन्त हुआ

राव चन्द्रसेन ने अपने स्वाभिमान को महत्व दिया व जंगलों में रहकर मुगलों से संघर्ष किया, इसलिए इन्हें "मारवाड़ का राणा प्रताप" भी कहा जाता है

"महाराणा प्रताप के मार्गदर्शन में सिरोही के राव सुरताण का मुगल विरोध"

> राव सुरताण देवड़ा के बड़े बेटे ने अकबर के एक सिपहसालार सैयद हुसैन की हत्या कर दी
राव सुरताण देवड़ा

> अकबर ने सैयद हुसैन की हत्या का बदला लेने के लिए जगमाल (महाराणा प्रताप के भाई) को सिरोही का राजतिलक व मुगल फौज की कमान सौंपकर सिरोही पर कब्जा करने भेजा

अकबर ने जालौर के एतमाद खां को भी जगमाल के साथ भेजा

जगमाल ने सिरोही पर हमला कर राव सुरताण को पहाड़ियों में जाने को विवश कर दिया

जगमाल ने सिरोही पर कब्जा कर लिया

एतमाद खां जगमाल की मदद के लिए गजनी खां, महमूद खां जालौरी, बिजा देवड़ा व रायसिंह राठौड़ (राव चन्द्रसेन के पुत्र) को सिरोही छोड़कर खुद जालौर चला गया

इससे जगमाल व राव सुरताण की शत्रुता हो गई, जो दो वर्ष बाद "दत्ताणी के युद्ध" में समाप्त हुई, जिसका हाल मौके पर लिखा जाएगा

> अगले भाग में दिवेर युद्ध से पूर्व की घटनायें लिखी जायेंगी

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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