* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 119
1577 ई.
* अकबर देपालपुर में ठहरकर महाराणा प्रताप पर फौजें भेजता रहा
अबुल फजल लिखता है "शहंशाह देपालपुर में कुछ और वक्त रुकना चाहते थे, ताकि वे उस बागी राणा के बादशाही मातहती कुबूल करने की खुशखबरी सुन सके"
* महाराणा प्रताप ने आवरगढ़ की पहाड़ियों से निकलकर दिबल दुर्ग पर मुगलों को मार-भगाकर अधिकार किया
30 मार्च, 1577 ई.
"अकबर का बूंदी पर हमला"
अबुल फजल लिखता है "बूंदी के राव सुर्जन हाडा के बेटे दूदा हाडा ने राणा कीका (राणा प्रताप) के बहकावे में आकर बूंदी में बगावत का झण्डा खड़ा कर दिया | शहंशाह ने फौज भेजकर दूदा को बूंदी से खदेड़ा और बूंदी फतह कर दूदा के भाई भोज को सौंप दिया | बादशाही फौज बूंदी से फतहपुर सीकरी के लिए निकली और पहले ही पड़ाव पर उन्हें खबर मिली कि दूदा भागकर मेवाड़ चला गया और राणा की मदद पाकर फिर से बूंदी में आकर लूटमार करने लगा और शाही फौज को तंग करने लगा | बूंदी में जो थोड़े-बहोत बादशाही फौजी आदमी थे, वे खौफ और बेवकूफी के सबब से बूंदी छोड़ने का इरादा करने लगे | शहंशाह ने कोकलताश को बूंदी भेजा, कोकलताश ने वहीं रहना तय किया, ताकि दुश्मन बूंदी पर कब्जा ना कर सके | दूदा ने एक पहाड़ी पर बगावत का झण्डा फहरा दिया, कोकलताश वहां पहुंचा | दोनों तरफ से लड़ाई हुई, जिसमें दूदा के 120 आदमी कत्ल हुए | दूदा हार कर भाग निकला | सरकश (बागी) लोगों के शैतानी खयालों की धूल साफ कर दी गई"
12 मई, 1577 ई.
* अकबर देपालपुर से चला गया और मेवाड़ के आसपास घूम-घूमकर फौजें भेजता रहा
* महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा मुगल थाने पर हमला किया व विजय प्राप्त की
"महाराणा प्रताप की उदयपुर विजय"
महाराणा प्रताप व मेवाड़ वालों ने उदयपुर का नाम मुहम्मदाबाद स्वीकार नहीं किया
महाराणा प्रताप ने उदयपुर मुगल थाने पर हमला किया व मुगलों को मार-भगाकर कब्जा किया
महाराणा प्रताप ने अकबर द्वारा रखे गए नाम 'मुहम्मदाबाद' को बदलकर फिर से 'उदयपुर' रखा व उदयपुर में अकबर द्वारा ढाले गए सिक्के बन्द करवा दिए
* अगले भाग में मोही के युद्ध के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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