Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 81



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 145

"सागरसिंह का मुगल सेवा में जाना"

(इस घटना का समय इतिहास में नहीं लिखा गया, लेकिन ये घटनाएँ 1583 ई. से 1590 ई. के बीच की मालूम होती हैं)

> सागरसिंह का जन्म 1556 ई. में हुआ

> ये महाराणा उदयसिंह व रानी धीरबाई भटियाणी का पुत्र व जगमाल का छोटा भाई था

> मेवाड़ के लिए जगमाल से ज्यादा सागरसिंह संकट का कारण बना

> महाराणा प्रताप ने जगमाल की मृत्यु पर ज्यादा शोक न किया और कुंवर अमरसिंह की पुत्री केसर कुमारी की सगाई सिरोही के राव सुरताण से तय की

इस बात से सागरसिंह नाराज हो गया | उसने महाराणा से कहा कि जिसने मेरे भाई की हत्या की, उसके साथ आप रिश्तेदारी कैसे निभा सकते हैं ?

महाराणा प्रताप ने कहा कि "कुल सिसोदिये हमारे भाई हैं, जिनमें से हर रोज कोई न कोई मरते हैं, हम किस-किस का बैर लेते फिरें | हमारे लिए सब राजपूत बराबर हैं"

सागरसिंह ने उठकर महाराणा प्रताप को प्रणाम किया और कहा कि "हमको जाने की आज्ञा हो"

तब महाराणा ने कहा "बेशक चले जाओ, तुम्हारे जाने से हमारा कुछ हर्ज नहीं, लेकिन इस तर्ज पर जाना जब ही समझा जावे कि आप अपने पराक्रम से नामवारी हासिल करें, वरना जाहिर है कि हमारे घराने के नाम से दिल्ली जाकर मुसलमानों की नौकरी करके पेट भरोगे"

> सागरसिंह वहां से निकला और आमेर के राजा मानसिंह के यहां अपनी पहचान छिपाकर मामूली नौकर की हैसियत से नौकरी करने लगा

एक दिन राजा मानसिंह अपनी भटियाणी रानी के साथ विश्राम कर रहे थे | बारिश हो रही थी और पर्नालों का पानी नीचे पत्थरों पर गिरने से आवाज हो रही थी, जो मानसिंह के विश्राम में बाधा बन रही थी |

(ये भटियाणी रानी जैसलमेर के राजा लूणकरण की दूसरी बेटी व मेवाड़ की रानी धीरबाई भटियाणी की सगी छोटी बहन थीं | इस तरह ये सागरसिंह की मौसी थी)

सागरसिंह ने अपनी सूझबूझ से नीचे घास बिछाकर ये आवाज रोक दी, तब मानसिंह ने बाहर आकर देखा और सागरसिंह को देखकर सोचा कि ये जरुर कोई खास व्यक्ति है | मानसिंह ने खुद नीचे आकर देखा तो पता चला कि ये मेवाड़ का राजकुमार है |

> मानसिंह कुछ समय बाद सागरसिंह को अकबर के यहां ले गया

अकबर ने सागरसिंह को शुरुआत में महज़ 200 सवार का मनसब दिया, पर कुछ वर्षों बाद इसे बढ़ाकर 3000 जात व 2000 सवार कर दिया गया व कंधार की जागीर दी

> अकबर ने सागरसिंह को जगमाल की मृत्यु का बदला लेने का एक मौका दिया

उसने सागरसिंह को शाही फौज के साथ सिरोही पर हमला करने भेजा, जिसका हाल अगले भाग में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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