* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 160
"महाराणा प्रताप के इतिहास का अन्तिम भाग"
"महाराणा प्रताप से सम्बन्धित स्थान"
* चित्तौड़गढ़ - यहां महाराणा प्रताप लगभग 17 वर्षों (1550 ई. - 1567 ई.) तक रहे
* कुम्भलगढ़ दुर्ग - महाराणा प्रताप का जन्म स्थान व युद्ध स्थली | महाराणा प्रताप इस दुर्ग में 4-5 युद्ध लड़े, जिनमें से एक को छोड़कर सभी में विजयी हुए | महाराणा ने यहां हुसैन कुली खान व अब्दुल्ला खान को पराजित किया था |
* हमीरसर/हमेरपाल/हमीरपाल तालाब - कुम्भलगढ़ के पास स्थित इस तालाब पर महाराणा प्रताप ने दिवेर विजय के बाद अधिकार किया
* हल्दीघाटी - राजसमन्द जिले में स्थित युद्ध स्थली | यहां हल्दीघाटी म्यूजियम भी है | 1985 ई. में यहां तलवारों का ज़खीरा मिला |
* हल्दीघाटी दर्रा - इसी दर्रे में से महाराणा प्रताप श्वेत अश्व चेतक पर सवार होकर अपनी सेना सहित हल्दीघाटी युद्ध के लिए निकले थे |
* आवरगढ़ :- महाराणा प्रताप द्वारा हल्दीघाटी युद्ध के बाद दो वर्षों तक आवरगढ़ को राजधानी बनाई गई | आवरगढ़ मेवाड़ का सबसे विकट व सुरक्षित पहाड़ी स्थान है, जहां कभी शत्रु सेना नहीं पहुंच सकी | यहां महाराणा प्रताप, उनके सैनिकों के रहने के कई खण्डहर मौजूद हैं | सभा का स्थान पहाड़ी के ऊपरी भाग पर है, जहां चबूतरा बना है | इस पहाड़ी से लगभग 20 मील तक निगरानी रखी जा सकती थी |
* दिवेर - राजसमन्द जिले में स्थित युद्ध स्थली
* मचीन्द - कुंवर अमरसिंह का जन्म स्थान | यहां एक काफी लम्बी गुफा है, जो महाराणा प्रताप संकट के समय एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए प्रयोग करते थे |
* मोती महल - उदयपुर जिले में स्थित | इसका निर्माण महाराणा उदयसिंह ने करवाया | ये महाराणा प्रताप का निवास स्थान था |
* चोर बावड़ी गांव - उदयपुर-गोगुन्दा के बीच स्थित इस गांव का निर्माण जसवन्त सिंह देवड़ा ने किया | ये महाराणा प्रताप का साथ देने सिरोही से मेवाड़ आए थे | महाराणा ने इस गांव में कुछ समय बिताया और यहां एक बावड़ी बनवाई | इस बावड़ी को दासियों को समर्पित करते हुए इसका नाम "दासियों की बावड़ी" रखा गया |
* छापली गांव - यहां महाराणा प्रताप ने छपामार युद्ध से मुगलों को पराजित किया | इसमें स्थानीय लोग भी महाराणा की तरफ से लड़े, तब से यह स्थान छापली रणभूमि के नाम ये विख्यात है | यहां महाराणा प्रताप का स्मारक स्थित है |
* मेवा का मथारा - दिवेर विजय का स्मारक
* उभयेश्वर महादेव मन्दिर
* चामुण्डा माता का मन्दिर (चावण्ड) - महाराणा प्रताप ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था
* एकलिंग जी का मन्दिर (नाथद्वारा)
* बदराणा - इस गांव का नाम महाराणा प्रताप ने झाला मान/बींदा की याद में बिदराणा रखा, जो कालान्तर में बदराणा हो गया | इस गांव में महाराणा प्रताप ने हरिहर मन्दिर का निर्माण करवाया |
* कोल्यारी - महाराणा प्रताप द्वारा स्थापित प्राथमिक उपचार केन्द्र
* रकमगढ़ की छापर (राजसमन्द)
* गोगुन्दा - गोगुन्दा में महाराणा प्रताप कुछ वर्षों तक रहे | यहां 4 बार मुगलों ने अधिकार किया व चार बार महाराणा प्रताप ने शाही फौज को शिकस्त दी | यहां महाराणा उदयसिंह का देहान्त हुआ | यहां स्थित महादेव जी की बावड़ी में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ | गोगुन्दा के राजमहल वर्तमान में राज राणा का निवास स्थान है |
* मनकियावास - महाराणा प्रताप ने दिवेर के युद्ध की रणनीति गोमती चौराहा से 3 किमी. व आमेट से 15 किमी. दूर मनकियावास के जंगलों में तैयार की | जंगली बिलावों की अधिकता के कारण इस गांव का नाम मनकियावास पड़ा | आत्मसुरक्षा के साथ ही आमेट, देवगढ़, रुपनगर व आसपास के ठिकानों से मदद पाने की नजर से भी यह स्थान उपयुक्त था | यहां से दिवेर की दूरी भी कम है | यहां बरगद के पेड़ के नीचे स्थित गुफा में रहते हुए महाराणा प्रताप गुप्त सुचनाएं एकत्रित करते थे |
* मोही - यहां कई बार महाराणा प्रताप व मुगलों के बीच युद्ध हुए
* मदारिया - यहां भी कई बार महाराणा प्रताप व मुगलों के बीच युद्ध हुए
* रामा - मुगल फौज ने इस गांव में महाराणा प्रताप की खोज की, लेकिन महाराणा नहीं मिले
* लोसिंग - हल्दीघाटी युद्ध के लिए प्रस्थान करते वक्त महाराणा प्रताप ने यहां पड़ाव डाला था
* मायरा की गुफा - उदयपुर से 30 किमी. दूर मोड़ी (गोगुन्दा) में स्थित | इस गुफा में प्रवेश के 3 मार्ग हैं | इस गुफा की खासियत ये है कि बाहर से देखने पर लगता है जैसे अन्दर कोई रास्ता नहीं है, पर जैसे-जैसे अन्दर जाते हैं रास्ता निकलता जाता है | गुफा में माँ हिंगलाज का प्राचीन स्थान है | यहां वो स्थान भी है जहां स्वामिभक्त चेतक को बांधा जाता था | यहां महाराणा प्रताप का रसोईघर भी है | इस गुफा की पहाड़ी से 10-12 मील दूर खड़ा कोई व्यक्ति दिखाई दे जाता था, पर 10-12 कदम दूर खड़ा व्यक्ति भी इस गुफा को नहीं देख पाता |
* जावर :- यहां जावरमाला की गुफा है, जिसमें महाराणा प्रताप कुछ समय रहे थे |
* आहोर व रोहेड़ा गांव :- इन गांवों में महाराणा प्रताप द्वारा निर्मित महल (छोटे मकान) हैं, जो अब तक मौजूद हैं |
* मायरा स्थित शस्त्रागार - इस शस्त्रागार के प्रधान हकीम खान सूर थे
* चावण्ड - मेवाड़ की राजधानी | यहां महाराणा प्रताप 12 वर्षों (1585 ई. - 1597 ई.) तक रहे
* बांडोली - महाराणा प्रताप का अन्तिम संस्कार स्थल
* अन्य स्थान - राणा खेत, राणा कड़ा, राणा गुफा, राणा का ढाणा, गौरी धाम, पंच महुआ, जोगमंडी, भीमगढ़, गोकुलगढ़, हाथीभाटा, कमेरी, धमकी मोड़ी, घोड़ाघाटी
Tanveer Singh Sarangdevot |
* अगले भाग से महाराणा अमरसिंह जी का इतिहास लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
आवरगढ किधर है ? कमल नाथ महादेवजी का मंदिर जहाँ है क्या वहा है ?
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