* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 143
1583 ई.
"बांसवाड़ा के रावल मानसिंह की मृत्यु व ठाकुर मानसिंह चौहान का गद्दी पर अवैध कब्जा"
इस समय बांसवाड़ा पर रावल प्रतापसिंह के दासीपुत्र रावल मानसिंह का शासन था
बांसवाड़ा में भीलों ने बगावत की, तो रावल मानसिंह ने सैकड़ों भीलों को मारकर उनके सर्दार को गिरफ्तार कर लिया
उस भील सर्दार ने अचानक एक राजपूत की तलवार छीनकर रावल मानसिंह को मार दिया
इसी समय बांसवाड़ा के सामन्त ठाकुर मानसिंह चौहान ने उस भील सर्दार को मार दिया और खुद बांसवाड़ा की गद्दी पर बैठ गया
इस समय बांसवाड़ा महाराणा प्रताप के अधीन था, इसलिए बांसवाड़ा का अगला शासक कौन होगा ये महाराणा को तय करना था, पर ठाकुर मानसिंह चौहान ने महाराणा प्रताप के विरुद्ध जाकर बांसवाड़ा की राजगद्दी हथिया ली
"डूंगरपुर रावल साहसमल की बांसवाड़ा चढ़ाई"
महाराणा प्रताप के अधीन डूंगरपुर नरेश रावल साहसमल ने मानसिंह चौहान को खत लिखा कि "तुमको सिसोदियों का राज नहीं मिल सकता"
मानसिंह चौहान ने खत का जवाब नहीं दिया, तो रावल साहसमल ने बांसवाड़ा पर हमला किया
मानसिंह चौहान ने रावल साहसमल को पराजित कर डूंगरपुर लौटने को विवश कर दिया
"महाराणा प्रताप द्वारा बांसवाड़ा पर फौज भेजना"
महाराणा प्रताप इस समय मुगलों से संघर्ष में उलझे हुए थे, फिर भी उन्होंने एक छोटी सी सेना रावत रतनसिंह चुण्डावत व रावत रायसिंह चुण्डावत के नेतृत्व में भेजी
मानसिंह चौहान ने कुल बांसवाड़ा की फौज समेत मेवाड़ी फौज का सामना किया
इस लड़ाई में मानसिंह चौहान विजयी रहा और मेवाड़ की तरफ से रावत रायसिंह चुण्डावत वीरगति को प्राप्त हुए
"महाराणा प्रताप की बांसवाड़ा पर कूटनीतिक कार्यवाही"
महाराणा प्रताप व डूंगरपुर के रावल साहसमल ने मिलकर कूटनीति से बांसवाड़ा का आधा राज्य मानसिंह चौहान से छीनकर बांसवाड़ा के वैध उत्तराधिकारी रावल उग्रसेन (रावल प्रतापसिंह के भाई) को दिलवा दिया
महाराणा प्रताप द्वारा बांसवाड़ा पर अगली कार्यवाही 1586 ई. में की गई, जिसका हाल मौके पर लिखा जाएगा
* अगले भाग में सिरोही राव सुरताण (महाराणा प्रताप के मित्र) व मेवाड़ के जगमाल (महाराणा के भाई) के बीच हुए "दत्ताणी के युद्ध" के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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