* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 135
1580 ई.
"अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना का मेवाड़ अभियान"
* महाराणा प्रताप द्वारा मालवा में की गई लूटमार के बाद अकबर ने अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना को मालवा भेजा
"अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना"
ये अकबर के संरक्षक बैरम खां का बेटा था | ये दिल का नेक इन्सान था | इसको कृष्ण भक्त कवि रहीम के रुप में भी जाना जाता है | ये अकबर के नवरत्नों में से एक था | अकबर ने बैरम खां की विधवा बेगम सलीमा सुल्तान से निकाह किया था | इस तरह रहीम अकबर का भी बेटा था |
"रहीम की भामाशाह से भेंट"
* मालवा में रहीम की भेंट भामाशाह कावडिया से हुई
रहीम ने भामाशाह से कहा कि अब महाराणा प्रताप को शहंशाह अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिये, पर भामाशाह ने इनकार किया
"कुंवर अमरसिंह की शेरपुर विजय"
* रहीम ने शेरपुर में अपने परिवार व सेना सहित पड़ाव डाला
* रहीम अपने परिवार को एक फौजी टुकड़ी की निगरानी में रखकर खुद फौज समेत महाराणा प्रताप के पीछे गया
* इस वक्त कुंवर अमरसिंह गोगुन्दा में थे
कुंवर अमरसिंह को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने रहीम का ध्यान महाराणा से हटाने के लिए शेरपुर पर हमला कर दिया
कुंवर अमरसिंह शाही फौजी टुकड़ी को पराजित करके रहीम की बेगमों को बन्दी बनाकर महाराणा प्रताप के समक्ष प्रस्तुत हुए
इन बेगमों में से दो के नाम ज़ीनत व आनी बेगम है
महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को जोरदार फटकार लगाते हुए रहीम की बेगमों को सुरक्षित रहीम तक पहुंचाने का आदेश दिया
"रहीम का पश्चाताप"
* आनी बेगम ने रहीम को सारी घटना बताई
आनी बेगम रहीम को घटना बताती हुई |
* रहीम जब सीकरी पहुंचा, तो उसने अपने पद से इस्तीफा दिया और सलीम (जहांगीर) के अर्तालीक (शिक्षक) के पद पर नियुक्त हुआ
* आगरा पहुंचकर रहीम ने महाराणा प्रताप के लिए ये पंक्तियाँ लिखीं, जो आज हर राजपूत की जुबान पर होती है और आज भी उदयपुर के राजचिन्ह में अंकित है :-
"जो दृढ़ राखै धर्म को, तिंही राखै करतार |
इण मन्त्र रो जाप करे, वो मेवाड़ी सरदार ||"
* रहीम ने महाराणा प्रताप के लिए लिखा - "इस संसार में सभी नाशवान है, परन्तु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती | प्रताप ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परन्तु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया | हिन्द के राजाओं में वो एक ही है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है |"
* हालांकि रहीम ने कुछ समय बाद फिर से अपने पहले वाले पद को स्वीकार किया व इस घटना के 5 वर्ष बाद 1585 ई. में अकबर के आदेश पर दोबारा महाराणा के खिलाफ मेवाड़ अभियान का नेतृत्व किया, जिसका हाल मौके पर लिखा जाएगा
* अगले भाग में दिवेर युद्ध से पूर्व की विभिन्न घटनाओं के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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