Saturday, 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 62



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 126

1578 ई.


* महाराणा प्रताप माउंट आबू के ऋषिकेश-भारना- सालगांव-अचलगढ़-गुरुशिखर-उतरज होते हुए शेरगांव पहुंचे

सिरोही के राव सुरताण ने उनकी सिरोही पहुंचने में मदद की

यहां महाराणा प्रताप एक गुफा में रहे, जिसे भैरोगुफा कहा जाता है
भैरोगुफा

* इसी वर्ष महाराणा प्रताप के मित्र व ससुर ईडर के राय नारायणदास का देहान्त हुआ

इनके 2 पुत्र थे - वीरमदेव व कल्याणमल

वीरमदेव ईडर के शासक बने

* शाहबाज खां ने मेवाड़ में 50 मुगल थाने व मेवाड़ के आसपास 30 मुगल थाने तैनात किये

इससे पहले मेवाड़ के इतिहास में कभी भी इतने मुगल थाने तैनात नहीं किए गए थे

* महाराणा प्रताप सिरोही से मेवाड़ पधारे

"महाराणा प्रताप के साथी राव दूदा हाडा का पकड़ा जाना"

> इसी वर्ष शाहबाज खां को एक जगह महाराणा प्रताप के शिविर होने की सूचना मिली, तो उसने वहां धावा बोला

उसे वहां महाराणा प्रताप तो नहीं मिले, पर महाराणा के मित्र बूंदी के राव दूदा हाडा पकड़े गए

5 जून, 1578 ई.

> शाहबाज खां राव दूदा को लेकर मेवाड़ से चला गया

17 जून, 1578 ई.
> शाहबाज खां राव दूदा हाडा को लेकर तिहारा गांव में पहुंचा, जहां अकबर का पड़ाव था

> अकबर ने राव दूदा के लिए कहा

"इसके माथे पर तो लगातार बर्बाद होना ही लिखा है | जो शैतान होते हैं, उनके लिए बादशाही मेहरबानियों का हमेशा अकाल पड़ा रहता है"

> अबुल फजल लिखता है

"शाहबाज खां राव सुर्जन के बेटे दूदा को लेकर शाही दरबार में आया | जैसा कि पहिले ही बताया जा चुका है कि शाहबाज खां को राणा को सजा देने भेजा गया था | शाहबाज खां ने बेहतरीन काम किया और कई बागी कत्ल हुए | राणा का मकान लूट लिया और राणा भागकर पहाड़ियों में चला गया | दूदा, जो कि हमेशा वक्त-वक्त पर राणा से हाथ मिलाकर बगावत करता था, उसने बादशाही मातहती कुबूल की"

> राव दूदा को पंजाब में ही छोड़कर अकबर आगरा चला गया

राव दूदा मौका देखकर फिर पंजाब से बच निकले, पर इसके बाद उनका मुगल सल्तनत से विरोध करने का उल्लेख नहीं मिलता

"महाराज शक्तिसिंह द्वारा भीण्डर की रक्षा"

इसी वर्ष दशोर (वर्तमान में मन्दसौर) की तरफ से मिर्जा बहादुर ने भीण्डर पर हमला किया

भीण्डर के शासक अमरसिंह (महाराणा प्रताप के मामा मानसिंह सोनगरा के पुत्र) ने शक्तिसिंह जी से सहायता मांगी

शक्तिसिंह जी ने मिर्जा बहादुर को पराजित कर भीण्डर की रक्षा की

महाराणा प्रताप ने शक्तिसिंह जी के कार्यों से प्रसन्न होकर उन्हें बेगूं व भीण्डर की जागीर दे दी

* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा डूंगरपुर-बांसवाड़ा पर आक्रमण के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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