आवरगढ़ में महाराणा प्रताप परिवार सहित भोजन करते हुए |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 115
जनवरी, 1577 ई.
"अकबर का डूंगरपुर पर अधिकार"
> अकबर डूंगरपुर गया | डूंगरपुर के रावल आसकरण ने अकबर की अधीनता स्वीकार की |
> अबुल फजल लिखता है "डूंगरपुर के रावल आसकरण ने बादशाही मातहती कुबूल की | इस बात से नाराज़ होकर आसकरण का बेटा साहसमल राणा कीका (राणा प्रताप) के पास चला गया और उससे हाथ मिला लिया"
> डूंगरपुर-बांसवाड़ा द्वारा बादशाही मातहती कुबूल करने से महाराणा प्रताप बेहद नाखुश हुए
"ईडर का पहला युद्ध, मुगलों का कब्जा व महाराणा का पलटवार"
> ईडर का इलाका गुजरात का हिस्सा था, जहां महाराणा प्रताप के ससुर जी राय नारायणदास राठौड़ का शासन था
> अकबर ने कुलीन खां को फौज समेत ईडर पर हमला करने भेजा, तो राय नारायणदास ने महाराणा प्रताप को मदद खातिर बुलाया
> राय नारायणदास ने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर ईडर में ही मुगल सेनापति कुलीन खां से युद्ध लड़ा
> प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है
"राणा कीका (राणा प्रताप) की तरह, जैसा कि लूटेरे किया करते हैं, वह (नारायणदास) पहाड़ों-जंगलों में भटकता रहा | जो चाँद (राणा प्रताप) करता है, भला उसकी नकल कौनसा तारा नहीं करेगा | कुछ राजपूत मन्दिरों के बाहर तलवार-भाले लेकर डटे रहे और मरने को उतारु होकर शाही फौज पर हमला करने लगे | शाही फौज पीठ दिखाकर भागने लगी, पर फिर लौटकर आई | अलबत्ता फतह का झंडा बादशाही फौज के हाथ रहा, पर उमर खां, हसन बहादुर वगैरह सिपहसालारों ने आखरी सांस तक लड़ाई की और शहीद होकर जन्नत में जगह बनाई | गर्दन उठाने वाले लोग कत्ल हुए | ईडर से लूट का माल शाही फौज के हाथ लगा"
> कुछ दिन बाद महाराणा प्रताप और राय नारायणदास ने मिलकर ईडर पर हमला किया और शाही फौज को खदेड़कर ईडर की गद्दी पर फिर से राय नारायणदास को बिठाया
* अकबर मेवाड़ में डेढ महीना ही रहा, पर मेवाड़ के आसपास महिनों तक रहा और महाराणा प्रताप पर लगातार फौजें भेजता रहा
फरवरी-मार्च, 1577 ई.
"आवरगढ़ को अस्थायी राजधानी बनाना"
> महाराणा प्रताप ने झाड़ौल के कमलनाथ पर स्थित आवरगढ़ में अस्थायी राजधानी बनाई
> मान्यता है कि इसी कमलनाथ पर्वत पर लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर काटा था
> आवरगढ़ के जंगल में होली बुर्ज पर महाराणा प्रताप ने 28 फरवरी को अपना 5वां राज्यारोहण दिवस मनाया
> महाराणा प्रताप ने यहां होली भी जलाई, तब से आज तक सबसे पहले होली यहीं जलाई जाती है
> आवरगढ़ पर शत्रुदल कभी नहीं पहुंच सका
आवरगढ़ मेवाड़ का सबसे सुरक्षित स्थान था
जिन घायल सैनिकों को लम्बे समय तक उपचार की आवश्यकता हो व वीरगति को प्राप्त हो चुके वीरों के परिवार की महिलाओं को यहां रखा जाता था
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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