* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 158
* अंग्रेज इतिहासकार विन्सेट स्मिथ अपनी किताब 'दी ग्रेट मुगल - अकबर' में लिखता है
"राणा प्रताप पर हमला करने की कोई एक खास वजह लिखना जरुरी नहीं है, उसकी देशभक्ति ही उसका गुनाह था | सभी राजा-महाराजाओं में केवल राणा की आजादी अकबर से सहन नहीं हो रही थी | राणा को वह अन्य राजाओं की तरह झुकाने में असफल हुआ, तो अकबर ने उसे तोड़ने की कोशिश की | हल्दीघाटी युद्ध के जरिए अकबर राणा व उसके साम्राज्य को पूर्ण रुप से नष्ट करना चाहता था | पर इस अभियान से अकबर को घोर निराशा हुई, क्योंकि वह राणा के दम्भ को कुचल नहीं पाया था | अकबर राणा की मृत्यु चाहता था, पर राणा भी अपने जीवन का बलिदान करने में पीछे नहीं था | राणा मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध बनाकर अपने रक्त को दूषित नहीं करना चाहता था | बहुत पीड़ा सहन करने के बाद राणा सफल हुआ और अकबर असफल"
* अबुल फजल लिखता है "शहंशाह जो फरमान तकरीबन पूरे हिन्दुस्तान में जारी करते थे, वो फरमान राणा कीका नहीं मानता था"
* अंग्रेज इतिहासकार हैरिस लिखता है
"यद्यपि आगरे का नया शहर बसाने में अकबर का ध्यान लग रहा था, तो भी राज्य की वह तृषा, जो कि उसकी तख्तनशीनी के शुरु के सालों में नज़र आई थी, न बुझी | हिन्दुस्तान के एक राजा का हाल सुनकर, जो कि अकलमन्दी और दिलेरी के वास्ते मशहूर था | जिसका इलाका बादशाह की राजधानी से सिर्फ बारह मंजिल के फासिले पर था, उसको बादशाह ने फौरन फ़तह करने का इरादा किया | खासकर इस वजह से कि वह इलाका उसके मौरुसी राज्य और नये फ़तह किए गए मुल्क के बीच में था | इस राजा का नाम राणा प्रताप था | राणा का खिताब उसके खानदान के सब राजाओं को हिन्दुस्तान के पुराने दस्तूर के मुवाफ़िक दिया जाता था | उसकी मदद करने वाला अगर कोई दूसरा राजा होता, तो वह अपने मुल्क चित्तौड़ की आज़ादी फिर हासिल कर लेता | तो भी उसने बड़े दरजे की कोशिश की, जो कि इस मुल्क की तवारिख में हमेशा याद रहेगी"
* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है
"मैं उन पहाड़ियों पर चढ़ा हूँ, उन नालों को पार किया है और उन मैदानों में घूमा हूँ, जो प्रताप के गौरवमय रंगमंच में पड़ते हैं | मैंने इनके वंशजों से पूछताछ की, तो वे कई बार इनकी गाथा सुनाते-सुनाते रो पड़ते थे"
* अंग्रेज इतिहासकार विन्सेट स्मिथ लिखता है
"प्रताप को उत्तराधिकार में एक तेजस्वी वंश का यश और उपाधियां प्राप्त हुई थीं, लेकिन न उसके पास राजधानी थी और न साधन"
* अंग्रेज इतिहासकार स्मिथ लिखता है
"वास्तव में प्रताप एेसा व्यक्तिवादी विद्रोही था, जो अकबर के महान साम्राज्य के सपने को नष्ट करने में जुटा हुआ था | वह अपने राज्य की स्वतंत्रता को अपने से चिपटाए हुए था | शाही दरबार में सम्मानपूर्ण स्थान के वादे को उसने तिरस्कारपूर्वक ठुकरा दिया था | जो दूसरे राज्यों ने किया था, उसका कोई अनुकूल प्रभाव प्रताप पर नहीं पड़ा | उसने मेवाड़ की स्वतंत्रता को अपने हृदय से लगाए रखने, जब तक बन पड़े उसकी रक्षा करने और फिर उसकी रक्षा के लिए जान देने की ठान रखी थी"
* एक अंग्रेज इतिहासकार लिखता है
"जिस शान के साथ दिल्ली का बादशाह अपने बड़े से तख्त पर बैठकर हिन्दुस्तान पर हुकूमत करता था, ठीक उसी शान के साथ मेवाड़ का राणा कीका जंगलों में पत्थर पर बैठकर उसी हुकूमत का विरोध करता था"
* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है
"वर्ष के उपरान्त वर्ष व्यतीत होते गए | हर वर्ष प्रताप के साधन कम हो जाते थे और उसकी विपत्तियां बढ़ जाती थीं | मनोभावना को आकाश जीतना ऊँचा उठा देने वाले छन्दों द्वारा देशप्रेमी प्रताप की प्रशंसा करने में राजा और सामन्त, हिन्दु और तुर्क सबमें होड़ लगी रहती थी"
* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है
"जो घाटी उदयपुर की रक्षा करती है, उसकी चोटी से प्रताप चित्तौड़ के उन कंगूरों को देखता था, जिनसे उसे सदा अनजान रहना था"
* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है
"मुगल सम्राट अकबर की स्मृति के लिए यह सम्मान की ही बात है कि उसका नाम प्रताप के साथ अनेक परम्परागत पद्य-पंक्तियों में अंकित है"
* अंग्रेज इतिहासकार फ्रेडरिक लिखता है
"दरबारी इतिहासकार चाहे जो कहें, प्रताप को विद्रोही व दुराग्रही जमींदार नहीं माना जाना चाहिए | जो भूमि उसके अधीन थी, वो स्वयं उसकी थी | संग्राम में उसके साथ ऐसे सामन्त जाते थे, जिनसे पीढियों से सम्बन्ध था | उसे समस्त राजपूत अपना विधिवत स्वाभाविक स्वामी स्वीकार करते थे"
* अगले भाग में उन घटनाओं का उल्लेख होगा, जिनमें महाराणा प्रताप के नाम ने प्रेरणा का काम किया
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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