* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 151
1585 ई.
* सूरखण्ड का शिलालेख :- इस वर्ष का एक शिलालेख अब तक उदयपुर के विक्टोरिया हॉल में मौजूद है, जिसका नाम "सूरखण्ड का शिलालेख" है | ये शिलालेख महाराणा प्रताप के देहान्त के बाद किसी ने महाराणा द्वारा जारी किया हुआ लिखकर इसे झूठा ही प्रसिद्ध कर दिया | सूरखण्ड के शिलालेख की भाषा भी महाराणा प्रताप के समय की नहीं लगती, इसलिए उस शिलालेख का वर्णन यहां नहीं किया जा रहा है |
* इसी वर्ष बूंदी के राव सुर्जन हाडा का देहान्त हुआ
1586 ई.
"बांसवाड़ा के उत्तराधिकार संघर्ष में महाराणा प्रताप द्वारा उग्रसेन का व अकबर द्वारा मानसिंह चौहान का पक्ष लेना"
> 1583 ई. में महाराणा प्रताप ने कूटनीति से ठाकुर मानसिंह चौहान से बांसवाड़े का आधा राज्य लेकर उग्रसेन को दिलवाया था, परन्तु आधा राज्य अब भी मानसिंह चौहान के हाथ में था जो कि बांसवाड़ा पर धोखे से अधिकार जमा कर बैठा था |
> मुहणौत नैणसी द्वारा लिखित एक घटना के अनुसार मारवाड़ के राव चन्द्रसेन के पुत्र आसकर्ण (महाराणा प्रताप के भाणजे) के देहान्त के बाद आसकर्ण की विधवा रानी का बांसवाड़ा के महलों में आना हुआ, तो मानसिंह ने उन पर कुदृष्टि डाली, जिससे उन्होंने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली |
> महाराणा प्रताप ने इस घटना से क्रोधित होकर डूंगरपुर रावल साहसमल के साथ मिलकर उग्रसेन को 1500 घुड़सवारों की फौजी मदद देकर मानसिंह चौहान पर हमला करने भेजा |
मानसिंह चौहान की फौज बुरी तरह पराजित हुई और खुद मानसिंह बांसवाड़ा के महलों की खिड़की से निकलकर भाग गया |
उग्रसेन के हमले से मानसिंह का सामन्त चावंडा भोजा सामरोत मारा गया व बांसवाड़ा पर उग्रसेन का अधिकार हुआ
उग्रसेन महाराणा प्रताप का सामन्त था, इसलिए बांसवाड़ा पर महाराणा प्रताप का पूर्णत: अधिकार हुआ
> अब मानसिंह चौहान ने मुगल बादशाह अकबर की शरण ली | अकबर जानता था कि अप्रत्यक्ष रुप से महाराणा प्रताप इस घटना से जुड़ चुके हैं, इसलिए उसने मानसिंह चौहान और मुगल सेनापति मिर्जा शाहरुख को मुगल फौज के साथ बांसवाड़े पर कब्जा करने भेजा |
> महाराणा प्रताप को पता चला, तो उन्होंने उग्रसेन व साहसमल के साथ मिलकर बादशाही मुल्क लूटना शुरु कर दिया | महाराणा मालवा की मुगल छावनियाँ लूटकर मेवाड़ पधारे |
मिर्जा शाहरुख व मानसिंह चौहान मालवा पहुंचे, जहां उग्रसेन नहीं मिले | फिर मुगल फौज बांसवाड़े की तरफ रवाना हुई |
> महाराणा प्रताप ने उग्रसेन को फौजी मदद देकर मिर्जा की फौज से लड़ने भेजा
> भीलवण नामक स्थान पर उग्रसेन व मानसिंह के बीच लड़ाई हुई, जिसमें मानसिंह चौहान व मुगल फौज पराजित हुई | इस लड़ाई में दोनों तरफ से कुल 400 सैनिक मारे गए |
> कुछ समय बाद उग्रसेन ने गांगा गौड़ को मानसिंह के डेरे में भेजा, जहां गांगा गौड़ ने मानसिंह का वध कर दिया |
* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा आमेर व जहांजपुर पर किए गए सफल आक्रमणों के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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