Saturday, 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 86



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 150

1585 ई.



* इसी वर्ष महाराणा प्रताप और अकबर ने अपनी-अपनी राजधानी बदली :-

* अकबर ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाई

"चावण्ड"

* महाराणा प्रताप ने उदयपुर में स्थित चावण्ड को मेवाड़ की राजधानी बनाई
चावण्ड का प्रवेश द्वार

* महाराणा प्रताप अपने जीवन के अन्तिम 12 वर्षों तक चावण्ड में ही रहे

"ये अटल प्रताप प्रतिज्ञा थी,
जिसने रजपूती धर्म निभाया |
पत्थर को तोड़ पहाड़ों में,
मेवाड़ नया निर्माण किया ||"

चावण्ड स्थित महाराणा प्रताप की गुफा

* इसी वर्ष महाराणा प्रताप ने चावण्ड में छप्पन के राठौड़ों के विद्रोह को दबाया व उनके सरदार लूणा चावण्डिया राठौड़ को पराजित किया | इस कार्य में रावत कृष्णदास चुण्डावत ने भी महाराणा का साथ दिया |

अन्य राठौड़ जमींदार, जिन्होंने मेवाड़ में रहते हुए भी महाराणा प्रताप की अधीनता स्वीकार न की, उनका भी दमन किया गया

इस तरह महाराणा प्रताप ने छप्पन (56 इलाकों के समूह) पर भी अधिकार कर लिया

* महाराणा प्रताप ने चावण्ड में चामुण्डा माता के पुराने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया
चावण्ड स्थित माँ चामुण्डा मन्दिर

* महाराणा प्रताप ने चावण्ड में 16 पनाहगाह बनवाए

इनमें महल, भवन, चतारों की ओवरी, मन्दिर आदि शामिल है

* चावण्ड के महलों के बारे में इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं
चावण्ड महलों के अवशेष

"महलों के खण्डहर बतलाते हैं कि उनमें विलासिता या वैभव का कोई दिखावा नहीं रखा गया था | इनकी बनावट में ग्रामीण जीवन तथा सुरक्षा के साधनों को प्रधानता दी गई थी | जगह-जगह मोर्चों की सुविधाएँ, निकलकर बचने की व्यवस्था और सादगी पर अधिक बल दिया गया था | ये महल युद्धकालीन स्थापत्य कला के अनूठे उदाहरण हैं"

* महाराणा प्रताप ने चावण्ड में रहकर मेवाड़ के अपराधियों को उचित दण्ड देकर उनकी संख्या में कमी करते हुए मेवाड़ में शान्ति का वातावरण स्थापित किया

* इसी वर्ष नवाब अली खां ने मेवाड़ में लूटमार की

महाराणा प्रताप ने रावत कृष्णदास चुण्डावत को फौज देकर उसका दमन करने भेजा

रावत चुण्डावत ने नवाब अली खां को मारकर उसकी फौज को खदेड़ दिया

* महाराणा प्रताप ने पहाड़ी जमीन में पैदा हो सकने वाली फसलें (कुरी, सामा, जौ) उत्पादन पर जोर दिया

महाराणा ने कूणप जल विधि अपनाई व कृषि से सम्बन्धित एक ग्रन्थ लिखवाया

* महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा में विशाल समारोह का आयोजन किया | इसमें उनका साथ देने वाले वीरों को तथा वीरगति को प्राप्त हो चुके वीरों के उत्तराधिकारियों को पुरस्कार दिये |

महाराणा ने मेवाड़ के वीरान भागों को फिर से बसाने की घोषणा की | पीपली, ढोलन, सघाना, टीकड़ आदि गांव पूरी तरह तहस-नहस हो गए थे, जिन्हें फिर से बसाया गया |

किसानों को नई भूमि दी गई | शीघ्र ही मेवाड़ के वीरान पड़े खेत फसलों से लहलहाने लगे |

महाराणा ने व्यापार व उद्योगों को प्रोत्साहन दिया | मेवाड़ के लोग - स्त्रियां, बच्चे, वृद्ध सभी निर्भय होकर घूमने लगे |

महाराणा अमरसिंह के समय में लिखे गए एक ग्रन्थ 'अमरसार' में लिखा है कि

"महाराणा प्रताप ने अपने राज्य में इतना सुदृढ़ शासन स्थापित कर दिया, कि औरतों और बच्चों को भी किसी का भय नहीं रहा | महाराणा प्रताप के शासनकाल में पाश (डोरी) की विद्यमानता महिलाओं की अलकाओं में ही होती थी | चोरों को पकड़ने के लिए पाश (रस्सी) का प्रयोग नहीं होता था | जन साधारण का उचित और नैतिक आचरण सामान्य बात हो गई थी"

* अगले भाग में बांसवाड़ा के उत्तराधिकार संघर्ष में महाराणा प्रताप द्वारा उग्रसेन का व अकबर द्वारा मानसिंह चौहान का पक्ष लेने के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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