Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 8

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 8


"मेवाड़ के इतिहास का भाग - 72"

फरवरी, 1568 ई.

* अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग पर 4 महीने घेरा डालकर हमला किया

चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ, जिसमें कुंवर प्रताप के 1700 रिश्तेदारों समेत 8000 राजपूत योद्धा, 1000 पठान, 30000 प्रजा व तकरीबन 1000 क्षत्राणियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया

30,000 मुगल मारे गए

कुंवर प्रताप इस दौरान कुम्भलगढ़ दुर्ग में तैनात थे | कुंवर प्रताप ने कानोड़ के रावत नैतसिंह सारंगदेवोत के साथ मिलकर कुम्भलगढ़ दुर्ग पर हमला करने वाले बादशाही सिपहसालार हुसैन कुली खां को पराजित किया |

चित्तौड़ के तीसरे साके की घटना कुंवर प्रताप के जीवन का आधार बन गई

1569 ई.

* अकबर की रणथम्भौर विजय

* इसी वर्ष अकबर ने कालिंजर दुर्ग भी फतह किया

* इसी वर्ष अकबर व हीर कंवर के पुत्र सलीम का जन्म हुआ, जो आगे चलकर जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ

1570 ई.
* अकबर के बेटे मुराद का जन्म

* महाराणा उदयसिंह कुम्भलगढ़ पधारे व फिर से सैनिकों की नई भर्ती प्रारम्भ की

कुम्भलगढ़ से वे फिर गोगुन्दा पधारे जहां वे बीमार रहने लगे

"अकबर का नागौर दरबार"

* इसी वर्ष नवम्बर-दिसम्बर में अकबर ने नागौर दरबार रखा, जहां राजपूताने के कई शासक उपस्थित हुए, पर महाराणा उदयसिंह ने इसमें भाग नहीं लिया

इस दरबार में जितने भी शासक थे, सभी ने बादशाही मातहती कुबूल की, पर मारवाड़ के राव चन्द्रसेन भरे दरबार से उठकर चले गए और जंगलों में प्रवेश किया |

जैसलमेर के हरराय, बीकानेर के कल्याणमल, मारवाड़ के मोटा राजा उदयसिंह ने मुगल अधीनता स्वीकार की

नागौर में मालवा के बाज बहादुर ने अकबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया

"गोडवाड़ का युद्ध"

गोडवाड़ मारवाड़ का इलाका था

गोडवाड़ में मुगल सेना के पड़ाव की खबर कुंवर प्रताप को मिली, तो कुंवर प्रताप ने बीमार अवस्था में लेटे हुए महाराणा उदयसिंह से ये कहते हुए फौज की मांग की कि "चित्तौड़ के विध्वंस का भारी मूल्य चुकाना होगा तुर्कों को, सो हमको हुजूर (दाजीराज) से फौज मिल जावे तो बेहतर रहेगा"

कुंवर प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ी सेना ने मुगल सेना को पराजित किया

कुंवर प्रताप ने चित्तौड़ के नरसंहार के प्रतिशोध स्वरुप मुगलों के डेरे उखाड़ते हुए गोडवाड़ को लूट लिया व कुछ समय बाद गोडवाड़ को मेवाड़ में मिला लिया

कुंवर प्रताप व रानी फूल बाई राठौड़ के पुत्र शैखासिंह को गोडवाड़ की जागीर दी गई

"महाराणा प्रताप व अकबर की शत्रुता"

गोडवाड़ के युद्ध से महाराणा प्रताप व मुगल सल्तनत के मध्य एक एेसे संघर्ष का आरम्भ हुआ, जो जीवनपर्यन्त चला |

ये संघर्ष महज एक या दो युद्धों तक सीमित नहीं था

जहां अकबर का मकसद महाराणा प्रताप को झुकाना, अपने विशाल साम्राज्य में से मेवाड़ की स्वतंत्रता छीनना था, वहीं महाराणा प्रताप का मकसद चित्तौड़ नरसंहार का प्रतिशोध, अपने स्वाभिमान को जीवित रखना व मेवाड़ को स्वाधीन रखना था

किसी एक युद्ध से इस संघर्ष का परिणाम नहीं निकलने वाला था, नतीजतन सिवाय दिवेर के युद्ध के यहां कोई भी निर्णायक युद्ध नहीं हुआ

1567 से 1597 ई. तक के 30 वर्षों में महाराणा प्रताप अधिकतर जंगलों में व छोटे-छोटे महलों में रहे व बड़े दुर्गों में रहने से परहेज किया

1571 ई.

* अकबर ने आमेर के राजा भारमल को महाराणा उदयसिंह के पास सन्धि प्रस्ताव लेकर भेजा, पर महाराणा उदयसिंह ने इसे अस्वीकार किया

* इसी वर्ष अकबर ने आगरा के स्थान पर फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाई

> अगले भाग में महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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