* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 100
21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
"हल्दीघाटी युद्ध का अन्तिम भाग"
"रक्त तलाई"
> हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से 150 प्रमुख योद्धाओं सहित बहुत से वीर सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए
> इस युद्ध में 150 खास मुगल सिपहसालार और 350 कछवाहा सिपहसालार हजारों सैनिकों सहित मारे गए
> हल्दीघाटी युद्ध के तुरन्त बाद बारिश हुई, जिससे दोनों तरफ के हजारों सैनिकों के रक्त ने खमनौर गांव में एक छोटी तलाई का रुप ले लिया, जिसे आज रक्त तलाई के नाम से जाना जाता है | वर्तमान में रक्त तलाई को एक गार्डन के रुप में विकसित किया हुआ है, जहां झाला मान, रामशाह तोमर, शालिवाहन तोमर की छतरियां, सती माता का स्थान व हाकिम खां सूर की मजार है |
* अकबर ने मुहम्मद खान को हल्दीघाटी युद्ध का मुआयना करने भेजा
मुहम्मद खान ने खमनौर में युद्धभूमि का जायजा लिया और लौटकर अकबर को विजय की खबर सुनाई
इस वक्त एक मुगल फौज बंगाल पर चढाई कर रही थी
अकबर ने इस फौज का हौंसला बढ़ाने के लिए हल्दीघाटी विजय की खबर सैयद अब्दुल्ला खां के जरिए भिजवाई
"कोशीथल महारानी की बहादुरी"
> हल्दीघाटी युद्ध से कुछ समय पहले मेवाड़ के कोशीथल ठिकाने के सामन्त का देहान्त हुआ | हल्दीघाटी युद्ध के समय कोशीथल के स्वर्गीय सामन्त के पुत्र छोटे थे, इसलिए युद्ध में भाग नहीं ले सकते थे |
ऐसी परिस्थिति में कोशीथल की महारानी ने युद्ध के लिए ज़िरहबख्तर पहने और इस तरह बहादुरी दिखाई कि खुद मेवाड़ के योद्धा भी उनको पहचान नहीं पाए |
> युद्ध के बाद जब महाराणा प्रताप घायल अवस्था में उपचार करवाने गाँव कालोड़ा में पहुंचे, तो वहां उन्होंने घायल सैनिकों की मदद करती हुई सैनिक वेश में एक स्त्री देखी | महाराणा प्रताप को जब कोशीथल महारानी के युद्ध में भाग लेने की बात पता चली तो उन्होंने महारानी की वीरता की काफी प्रशंसा की |
> महाराणा प्रताप ने कोशीथल महारानी से कहा कि "आप क्या पारितोषिक प्राप्त करना चाहेंगी"
महारानी की इच्छानुसार महाराणा प्रताप ने उनको एक कलंगी प्रदान की, जो 'हूंकार की कलंगी' के नाम से जानी जाती है | इस घटना के कई वर्षों बाद तक कोशीथल ठिकाने के ठाकुर इस कलंगी को अपनी पगड़ी पर लगाकर दरबार में आते रहे |
(हूंकार नाम का एक पक्षी होता है, जिसके पंखों की कलंगी अपना महत्व रखती है)
"हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम"
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप पराजित हुए, पर खुद मुगल लेखकों ने भी लिखा है कि बादशाही फौज की विजय नाम मात्र की थी
जब मुगल फौज कोई युद्ध जीत जाती थी, तो उस हारे हुए प्रदेश को लूट लिया करती, परन्तु हल्दीघाटी विजय से मुगलों को सिवाय रामप्रसाद हाथी के कुछ हाथ न लगा
यहां तक की हल्दीघाटी युद्ध के तुरन्त बाद मुगलों को महाराणा का इतना खौफ था कि उन्होंने महाराणा प्रताप का पीछा तक नहीं किया
अबुल फजल ने हल्दीघाटी युद्ध के वर्णन में शुरुआत में ही लिखा था कि 'इस जंग का मकसद राणा और उसके मुल्क को जड़ समेत उखाड़ना था'
मुगल ना तो मेवाड़ प्रदेश में लूटमार कर पाए और ना ही महाराणा प्रताप को मार पाए
यकिनन इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से बहुत से नामी योद्धाओं ने अपने बलिदान दिए, परन्तु मेवाड़ इस वक्त सदी के सबसे महान योद्धा के नेतृत्व में था
(हल्दीघाटी प्रकरण समाप्त)
* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा छापामार युद्ध पद्धति अपनाने व प्रताप प्रतिज्ञा के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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