Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 12

महाराणा प्रताप के इतिहास 


महाराणा प्रताप अरब व्यापारियों से घोड़े खरीदते हुए

"मेवाड़ के इतिहास का भाग - 76"

1572 ई.

* इस वर्ष महाराणा प्रताप ने अरब व्यापारियों से घोड़े खरीदे | महाराणा ने घोड़ों की परख ली, जिसमें एक घोड़ा मर गया, महाराणा को इसका बड़ा रंज हुआ | महाराणा के खरीदे हुए घोड़ों में एक श्वेत अश्व चेतक भी शामिल था | चेतक की आँखें नीली होने के कारण उसे नीला घोड़ा भी कहा जाता है |

(चेतक काठियावाड़ी नस्ल का अश्व था, इसलिए चेतक के गुजरात से होने का भी दावा किया जाता है)

"महाराणा प्रताप की छप्पन विजय"

चित्तौड़ के विध्वंस के बाद महाराणा की ताकत को कमजोर समझकर मेवाड़ के कुछ मातहत (अधीन) राजपूतों ने भी महाराणा की आज्ञा न मानकर खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहा

छप्पन के इलाके में राठौड़ों ने विद्रोह कर दिया

महाराणा प्रताप ने सफलतापूर्वक इस विद्रोह का दमन किया और छप्पन पर पुन: अधिकार किया

(ये छप्पन पर महाराणा प्रताप की दूसरी विजय थी | इससे पहले 1555-56 ई. में भी इन्होंने छप्पन जीता था)

"महाराणा प्रताप की मन्दसौर विजय"

मेवाड़ की उत्तर, पूर्व व पश्चिम सीमा पर मुगलों का अधिकार था | जिस वक्त मेवाड़ में तैनात मुगल छावनियां महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक से सचेत हो गईं, वहीं महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की दक्षिण दिशा से निकलकर मेवाड़ के बाहर स्थित दशपुर (वर्तमान में मन्दसौर) पर हमला कर दिया

महाराणा प्रताप दशपुर (मन्दसौर) में तैनात मुगल छावनियों को तहस-नहस कर शाही सूबेदारों को लूटते हुए मेवाड़ पधारे

(महाराणा प्रताप की मन्दसौर विजय के बारे में बूंदी के सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपने ग्रन्थ वंश भास्कर में लिखा है)

* इसी वर्ष अकबर के बेटे दानियाल का जन्म हुआ, जो आगे चलकर बड़ा शराबी हुआ

"जगमाल का मुगल सेवा में जाना"

> इसी वर्ष महाराणा प्रताप का भाई जगमाल अकबर की शरण में गया, तो अकबर ने उसे अजमेर का फौजदार बनाया | बैरम खान के बेटे रहीम ने अकबर से सिफारिश कर जगमाल को जहांजपुर का परगना भी दिलवा दिया | जहांजपुर मेवाड़ का हिस्सा था, जिस पर अकबर का अधिकार था |

> बनास नदी के दोनों ओर के प्रदेश को खौराड़ कहते हैं | इस प्रदेश पर कभी बरड़ गोत्रीय मीणों का राज था, जिसकी राजधानी गोरमगढ़ थी | महाराणा प्रताप के भाई जगमाल ने यह राज्य मीणों से छीन लिया |

"शक्तिसिंह का मुगल सेवा में जाना"

> एक बार किसी बात पर महाराणा प्रताप का उनके भाई शक्तिसिंह के साथ झगड़ा हो गया | बीच-बचाव करने आए राजपुरोहित नारायणदास पालीवाल ये लड़ाई रोक नहीं पाए, तो उन्होंने लड़ाई रोकने के लिए आत्महत्या कर ली |

(एक मत ये भी है कि शक्तिसिंह की तलवार के वार से अनजाने में नारायणदास जी का देहान्त हुआ, जिससे नाराज होकर महाराणा प्रताप ने शक्तिसिंह को मेवाड़ से निर्वासित किया)

इन राजपुरोहित जी के 4 पुत्र हुए, जिनमें से 2 हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए

> मेवाड़ के शक्तिसिंह 1572 ई. से 1576 ई. तक डूंगरपुर रावल आसकरण की सेवा में रहे, फिर डूंगरपुर में किसी जगमाल नाम के मंत्री का वध कर देने पर इन्हें डूंगरपुर छोड़ना पड़ा और ये मुगल सेवा में चले गए |

(शक्तिसिंह के सिर्फ मुगल सेवा में जाने का वर्णन मिलता है, लेकिन मुगलों की तरफ से इनके एक भी युद्ध लड़ने का कोई प्रमाण नहीं मिलता | शक्तिसिंह मुगल सेवा में कुछ समय ही रहे थे)

> अगले भाग में महाराणा प्रताप के शत्रुपक्ष की जानकारी दी जाएगी, जिसमें महाराणा के विरुद्ध अलग-अलग सैन्य अभियानों में भाग लेने वाले प्रमुख बादशाही सिपहसालारों के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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