Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 21

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास


 मेवाड़ के इतिहास का भाग - 85

1576 ई.

"हल्दीघाटी का युद्ध"

"हल्दीघाटी युद्ध का सही स्थान"


> अक्सर एक गलतफहमी है की इस युद्ध का नाम हल्दीघाटी होने से ये समझ लिया जाता है कि ये युद्ध पूरी तरह हल्दीघाटी में ही हुआ

महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी से होकर ही खमनौर में प्रवेश किया था | हालांकि हल्दीघाटी दर्रे के मुहाने पर भी लड़ाई हुई थी |

> अबुल फजल ने इस युद्ध को "खमनौर का युद्ध" कहा

> अब्दुल कादिर बंदायूनी ने इस युद्ध को "गोगुन्दा का युद्ध" कहा

> अमरकाव्य, राजप्रशस्ति और यहां तक की महाराणा प्रताप की तरफ से युद्ध में भाग लेने वाले चारण कवि रामा सांदू 'झूलणा महाराणा प्रतापसिंह जी रा' में दोहों के जरिए लिखते हैं, जिनका अर्थ है

"महाराणा प्रताप अपने अश्वारोही दल के साथ हल्दीघाटी पहुंचे, परन्तु भयंकर रक्तपात खमनौर के मैदान में हुआ"

> दरअसल मानसिंह ने हल्दीघाटी में प्रवेश किया ही नहीं, क्योंकि वह जानता था कि हल्दीघाटी जैसी दुर्गम घाटी में मेवाड़ से जीतना मुमकिन नहीं | मानसिंह ने हल्दीघाटी से ठीक पहले खमनौर में ही महाराणा प्रताप का इन्तजार किया था | खमनौर में जिस स्थान पर युद्ध हुआ, वो जगह समतल थी और बाद में रक्त तलाई के नाम से मशहूर हुई |

> निष्कर्ष रुप में ये कहा जा सकता है कि हल्दीघाटी का युद्ध दर्रे के मुहाने से लेकर बनास नदी के इर्द-गिर्द व खमनौर के मैदान में हुआ

"मेवाड़ की थर्मोपल्ली"

> कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी युद्ध को "मेवाड़ की थर्मोपल्ली" कहा

जेम्स टॉड द्वारा ऐसा कहने के पीछे ये ऐतिहासिक घटना जुड़ी है :-

यूनान (ग्रीस) में थर्मोपल्ली नाम की पहाड़ी घाटी में 400 ईसा पूर्व भयंकर युद्ध हुआ | इस युद्ध में विशाल ईरानी सेना ने यूनानी सेना पर आक्रमण कर दिया | राजा लिओनिडास पर इस घाटी की रक्षा का दायित्व था | राजा लिओनिडास ने अपनी 7000 की फौज को दो टुकड़ियों में विभाजित कर ईरानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया, परन्तु संख्याबल की जीत हुई और राजा लिओनिडास समेत उनके 6600 सैनिक इस युद्ध में काम आए |

(हालांकि महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध में जीवित बचे थे, लेकिन कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी युद्ध की तुलना थर्मोपल्ली से इसलिए की क्योंकि हल्दीघाटी का युद्ध भी घाटी में लड़ा गया था, लिओनिडास की तरह महाराणा प्रताप ने भी अपनी फौज को दो टुकड़ियों में विभाजित किया था, ईरानी सेना की तरह मुगल फौज भी हल्दीघाटी में भारी संख्या में आई थी, थर्मोपल्ली और हल्दीघाटी दोनों ही स्थानों को आज बलिदान और अद्भुत शौर्य का प्रतीक माना जाता है)

"चारण कवि"

महाराणा प्रताप की तरफ से इस युद्ध में जिन्दा बचने वाले चारण कवियों में प्रमुख रामा सांदू व गोरधन बोगस थे, जिन्होंने इस युद्ध का कुछ वर्णन किया है |

चारण कवियों का काम लड़ना नहीं था, पर जब ये लोग युद्धभूमि में जाते थे, तो वहां भी अपने शौर्य और बलिदान से बड़ा नाम कमाते |

> अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध से पहले मानसिंह द्वारा महाराणा प्रताप से दोबारा सन्धि हेतु मिलने व क्रोधवश महाराणा प्रताप द्वारा मांडलगढ़ पर चढाई करने के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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