Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 20

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास

मानसिंह और महाराणा प्रताप

* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 84

1576 ई.

"हल्दीघाटी का युद्ध"


"वनि घोर युद्ध अथोर पातल मान हरदीघाट पै,
तब क्रोध बोधहि सोध शाह अनेक जोधन दाट पै"

* मुगल सेनापति - मानसिंह


अकबर ख्वाजा की मजार पर दुआ मांगने और महाराणा प्रताप को पराजित करने के उद्देश्य से अजमेर पहुंचा

अकबर ने युद्ध की तैयारियां करने व मुगल फौज का सेनापति चुनने में 15 दिन लगा दिये

आमेर के 26 वर्षीय कुंवर मानसिंह कछवाहा को मुगल फौज का सेनापति चुना गया

मुगल सल्तनत के इतिहास में पहली बार किसी राजपूत को सेनापति बनाया गया

इससे अकबर के कुछ मुस्लिम सिपहसालारों जैसे नकीब खां, शैख अब्दुल नबी वगैरह ने मानसिंह के नेतृत्व में जाने से मना कर दिया

> अबुल फजल लिखता है "राणा कीका (राणा प्रताप) में बगावत और खुदएतमादी बहुत बढ़ गई थी | उसका पाखण्ड और कपट सब हदें पार कर चुका था | उसके लिए हंसते-हंसते मरने वाले बहादुर राजपूतों ने उसकी आँखों पर पर्दा डाल रखा था | राणा शहंशाह के भाग्य में लिखे चमत्कारों को नहीं समझ रहा था | शहंशाह के हुक्मों को न मानकर वह रास्ते से भटक गया था | सब राजा-महाराजाओं में सिर्फ राणा की आज़ादी शहंशाह से बर्दाश्त नहीं हो रही थी | शहंशाह ने उसे जड़ समेत उखाड़ फेंकने की ओर ध्यान लगाया | इस जंग का मकसद राणा और उसके वतन को पूरी तरह खत्म करना था | कुंवर मानसिंह, जिसे शहंशाह ने फर्जन्द के खिताब से नवाज़ा था, जिसकी बहादुरी के बराबर दरबार में कोई दूसरा नहीं था, उसे ये काम सौंपा गया | शहंशाह ने मानसिंह को विदा करते वक्त कम लफ्जों में हिदायत दी कि जंग के दौरान किस मुसीबत से कैसे निपटना है"

> 'सवानीह-ए-अकबरी' में लिखा है कि "उस वक्त शाही दरबार में मानसिंह ही एेसा शख्स था जो प्रताप से सामना होने पर प्रताप के खौफ से न भागे"

> मौतमिद खां 'इकबालनामा-ए-जहांगिरी' में लिखता है "मानसिंह राणा की ही बिरादरी का था | मानसिंह और उसके बाप-दादे हमारे मातहत होने से पहले राणा के बाप-दादों के मातहत (अधीन) और खिराजगुजार (करदाता) रहे | मानसिंह को भेजने से बादशाह का मतलब ये था कि राणा इसे अपने सामने छोटा और मातहत समझकर अपने रुतबे के खयाल से उससे लड़ने सामने जरुर आएगा और मारा जाएगा"

> अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है "मेरी मौजूदगी में शहंशाह ने अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह पर मानसिंह को बुलाया और खिलअत व सजा सजाया घोड़ा देकर कहा कि राणा कीका (राणा प्रताप) के शैतानी इलाके गोगुन्दा पर फतह हासिल करो"

* कुंवर मानसिंह कछवाहा का परिचय :-

मानसिंह आमेर के राजा भगवानदास के छोटे भाई भगवन्तदास का पुत्र था, जिसे भगवानदास ने गोद लिया था | अकबर ने मानसिंह को "फर्जन्द" व "राजा" की उपाधि दी | मानसिंह अकबर के नवरत्नों में से एक था |

हालांकि मानसिंह ने पहली बार सेना का नेतृत्व इसी युद्ध में किया, लेकिन स्वयं मुगल इतिहासकारों ने भी ये स्वीकार किया है कि मानसिंह इस युद्ध के लिए उपयुक्त सेनापति था |

> मानसिंह के लिए अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है

"हिन्दु इस्लाम की मदद खातिर तलवार खींचता है"

* मीर बख्शी - आसफ़ खां

अकबर ने आसफ़ खां को हल्दीघाटी युद्ध के लिए मीर बख्शी बनाया

आसफ़ खां :-

गोंडवाना की रानी दुर्गावती को आसफ़ खां ने ही पराजित किया था, उसके बाद चित्तौड़ के तीसरे विध्वंस में भी आसफ़ खां ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

आसफ़ खां ने अप्रत्यक्ष रुप से इस युद्ध को "जिहाद" की संज्ञा दी

(कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अकबर ने आसफ़ खां को इसलिए मीर बख्शी बनाया, क्योंकि अकबर को मानसिंह पर पूरा भरोसा नहीं था)

> अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध के सही स्थान व कर्नल जेम्स टॉड द्वारा हल्दीघाटी को थर्मोपल्ली कहने के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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