महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 16
हकीम खां सूर महाराणा प्रताप से भेंट करते हुए |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 80
"सन्धि प्रस्तावों की असफलता"
> अकबर द्वारा भेजे गए 4 शान्ति दूत में से आखिरी 3 हिन्दु थे, एेसा करने के पीछे अकबर का मकसद ये था कि हिन्दु ही हिन्दु को बेहतर तरीके से समझा सकता है
> अकबर ने इन सन्धि प्रस्तावों में महाराणा प्रताप के एक प्रसिद्ध हाथी रामप्रसाद की बार-बार मांग की, पर महाराणा ने इस मांग को ठुकरा दिया
> अकबर ने सन्धि के जरिए अपने विशाल साम्राज्य का आधा भाग महाराणा प्रताप के सुपुर्द करने का प्रस्ताव रखा, बशर्ते महाराणा प्रताप मुगल ध्वज के तले उस साम्राज्य पर शासन करे
महाराणा प्रताप ने इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया
> इस तरह अकबर का एक भी सन्धि प्रस्ताव महाराणा प्रताप के स्वाभिमान को नहीं हिला सका
* इन्हीं दिनों अकबर ने गुजरात विजय के लिए जो सेना भेजी थी, वो गुजरात से आगरा लौट रही थी | मुगल फौज जब राजपूताना से होकर गुजरी, तो महाराणा प्रताप ने अपने मात्र 50-60 सैनिकों के साथ जंगलों में से अचानक निकलकर मुगल फौज पर हमला कर दिया | अचानक हुए इस हमले ने मुगल फौज को झकझोर कर रख दिया | कई मुगल मारे गए व महाराणा ने शाही फौज को लूटकर उन्हें आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया |
(मेवाड़ी ख्यातों व कुछ फारसी तवारिखों में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है)
1573 ई.
* महाराणा प्रताप ने एक ब्राह्मण को भूमि दान की
ताम्रपत्र :- महाराणा प्रताप द्वारा भूमि दान के लिए जारी किया गया ये ताम्रपत्र वर्तमान में उदयपुर के विक्टोरिया हॉल संग्रहालय में खण्डित अवस्था में सुरक्षित है | इस ताम्रपत्र में 12 पंक्तियां लिखी हैं, जिनमें से 4 ही पढ़ी जा सकती हैं | शेष भाग अस्पष्ट है | ताम्रपत्र के अनुसार महाराणा प्रताप ने ज्येष्ठ शुक्ल 5 सोमवार संवत् 1630 को किसी ब्राह्मण को भूमि दान की |
* कुछ समय बाद महाराणा प्रताप ने लखा बारठ को मनसुओं का गाँव प्रदान किया
* इसी वर्ष अकबर ने खुद गुजरात विजय के लिए कूच किया और इसी दौरान अकबर ने गुजरात में पहली बार समन्दर देखा | अकबर ने गुजरात विजय की याद में बुलन्द दरवाजा बनवाया |
* इसी वर्ष गुजरात में ईडर की राजगद्दी पर राय नारायणदास राठौड़ बैठे | ये महाराणा प्रताप के ससुर थे व इन्होंने महाराणा प्रताप का खूब साथ दिया | इन्होंने भी महाराणा की तरह घास की रोटियाँ खाई थीं |
अबुल फजल लिखता है "ईडर के राय नारायणदास को घास-फूस खाना मंजूर था, पर बादशाही मातहती कुबूल करना नहीं"
1574 ई.
* इस वर्ष आमेर के राजा भारमल का देहान्त हुआ | भगवानदास आमेर का शासक बना |
* इसी वर्ष बीकानेर नरेश राव कल्याणमल का देहान्त हुआ | राजा रायसिंह (महाराणा प्रताप के बहनोई) बीकानेर के शासक बने | इन्होंने अकबर का साथ दिया |
* इसी वर्ष अकबर ने मारवाड़ के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए राजा रायसिंह को भेजा, पर रायसिंह को सफलता नहीं मिली |
* इसी वर्ष अकबर ने बंगाल व बिहार पर विजय प्राप्त की
"पठान हकीम खां सूर"
इनका जन्म 1538 ई. में हुआ | ये अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के वंशज थे | अकबर के बिहार पर अधिकार करने के बाद हकीम खां सूर मेवाड़ आए व अपने 800 से 1000 अफगान सैनिकों के साथ महाराणा के सामने प्रस्तुत हुए | हकीम खां सूर को महाराणा ने मेवाड़ का सेनापति घोषित किया | हकीम खां हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे | ये मेवाड़ के शस्त्रागार (मायरा) के प्रमुख थे | मेवाड़ के सैनिकों के पगड़ी के स्थान पर शिरस्त्राण पहन कर युद्ध लड़ने का श्रेय इन्हें ही जाता है |
"मूं पालूं इस्लाम धर्म,
न: कौम करम तालूंह |
मनक पणो महराण लख,
मूं मनक धर्म पालूं ||"
अर्थात् हकीम खां सूर कहते हैं "चाहे मैं इस्लाम धर्म पालता हूं, लेकिन मेरे लिए महाराणा की मर्यादाएँ सर्वोच्च महत्व रखती हैं"
> अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा गुजरात के बादशाही इलाकों में भारी लूटमार व हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व की तैयारियाें के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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