महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 88
21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
"हल्दीघाटी युद्ध में सैनिकों की संख्या"
अलग-अलग इतिहासकारों ने सेना की संख्या भी अलग-अलग बताई है -
> कर्नल जेम्स टॉड व ख्यातों के अनुसार :- 80,000 मुगल फौज व 22,000 मेवाड़ी फौज
{कर्नल जेम्स टॉड व ख्यातों का इतिहास अक्सर बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है | इसका पता इसी बात से चल सकता है कि कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध में मानसिंह की जगह सलीम (जहांगीर) द्वारा मुगल फौज का नेतृत्व करने की बात लिखी है, जबकि सलीम इस वक्त 7 वर्ष का था | 1568 ई. में चित्तौड़ के विध्वंस में मेवाड़ के लगभग सभी वीर वीरगति को प्राप्त हो चुके थे, तो महाराणा प्रताप मात्र 8 वर्षों में 22000 की फौज नहीं बना सकते थे | इसका एक और तर्क है कि जब अकबर ने स्वयं अपने नेतृत्व में चित्तौड़ जैसे सुदृढ़ दुर्ग पर चढाई कि तब उसकी फौज 60,000 थी, तो वह मानसिंह को 80,000 की फौज एक आमने-सामने लड़े जाने वाले युद्ध के लिए नहीं दे सकता था}
> मुहणौत नैणसी के अनुसार - 40000 मुगल फौज व 10000 मेवाड़ी फौज
> अब्दुल कादिर बंदायूनी, अबुल फजल के अतिरिक्त वर्तमान में बहुत से इतिहासकारों के अनुसार :- 5000 मुगल फौज व 3000 मेवाड़ी फौज
> प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार के अनुसार -
3000 मेवाड़ी फौज व 10000 मुगल फौज
"निष्कर्ष"
मुगलों की तरफ से हल्दीघाटी युद्ध में मौजूद अब्दुल कादिर बंदायूनी के बताए गए आँकड़ों के अनुसार युद्ध में 5000 सवार (मुगल + कछवाहा राजपूत) व 3000 मेवाड़ी सवार थे
बंदायूनी की ये बात सत्य है, लेकिन मुगल इतिहासकार अक्सर सिर्फ घुड़सवारों की ही गिनती लिखते थे, पैदल फौज की नहीं | बंदायूनी ने ये आँकड़े बताते वक्त साफ लिखा है कि 5000 सवार हमारे साथ थे |
इसके अतिरिक्त मुगलों ने आँकड़े छुपाने की कोशिश की है, जैसे अबुल फजल ने लिखा है "जंग में मुगल फौज की हार करीब थी कि तभी मेहतर खां पीछे खड़ी मुगल फौज को आगे ले आया और नतीजे बदल दिए"
> इस तरह ओझा जी के बताए अनुसार मेवाड़ी फौज के सही आँकड़े इस तरह हैं :-
3000 घुड़सवार, 2000 पैदल फौज व 100 नक्कारे बजाने वाले व सामान ढोने वाले
(5000 की इस मेवाड़ी फौज में 400 भील, 800 अफगान, 3000 राजपूत व शेष ब्राह्मण व चारण थे)
> मुगल फौज के आँकड़े इस तरह हैं :-
10,000 घुड़सवार (मुगल + कछवाहा)
10,000 पैदल फौज (मुगल + कछवाहा)
इस तरह मेवाड़ी फौज 5,000 व मुगल फौज लगभग 20,000 थी, पर इन आँकड़ों को देखकर ये नहीं कहा जा सकता कि मुगल फौज मेवाड़ी फौज की मात्र चार गुना थी | इस फौजी ताकत के अलावा हथियार-हाथियों की संख्या नीचे लिखी जाती है :-
> बन्दूकें :- मेवाड़ की तरफ से बन्दूकों को उपयोग नहीं हुआ | मेवाड़ी फौज में 800 अफगान थे, लेकिन इन्होंने भी बन्दूकों का उपयोग नहीं किया, जबकि मुगलों ने सैकड़ों बन्दूकों का उपयोग किया
> हाथी :- मेवाड़ की तरफ से रामप्रसाद, लूना समेत कुल 100 हाथी थे, जबकि मुगल फौज में हाथी सैंकड़ों की तादाद में थे और मुगल हाथी हथियारों से लैस थे, जिनकी सूंड में भी खांडे लगा रखे थे
> घोड़े :- मेवाड़ी फौज में 3,000 घोड़े थे, जिनमें से 300 घोड़े जोशी पूनो नाम के व्यक्ति के थे व शेष अरबी और गुजराती घोड़े थे, जबकि मुगल फौज में घोड़ों की संख्या 10,000 थी
> तोपें :- मेवाड़ की तरफ से तोपों का उपयोग नहीं हुआ, जबकि मुगलों ने मेवाड़ के खराब रास्तों की वजह से बड़ी तोपें ना लाकर उच्च तकनीक वाली छोटी तोपों का प्रयोग किया
> ऊँट :- मेवाड़ की तरफ से ऊँटों का उपयोग नहीं हुआ, जबकि मुगल लेखक मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद लिखता है "हल्दीघाटी की जंग में मुगल फौज में ऊँटों के रिसाले आँधी की तरह दौड़ रहे थे"
* अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध में भाग लेने वाले प्रमुख मुगल व कछवाहा सिपहसालारों के नाम व मेवाड़-मुगल फौजों की जमावट के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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