महाराणा प्रताप कोल्यारी गांव में उपचार करवाते हुए |
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 101
22 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी युद्ध के बाद"
* हल्दीघाटी युद्ध के अगले दिन मुगलों ने युद्धभूमि में प्रवेश किया और जायज़ा लिया की हर एक ने कैसा काम किया
जून, 1576 ई.
"कोल्यारी गांव में उपचार"
> महाराणा प्रताप कालोडा गांव से रवाना हुए और आहोर होते हुए कोल्यारी गाँव में पहुंचे
> महाराणा प्रताप ने कोल्यारी गाँव को प्राथमिक उपचार के लिए विकसित कर रखा था
> कोल्यारी में महाराणा ने अपना, अपने सैनिकों का व जख्मी घोड़ों का उपचार करवाया
"छापामार युद्ध नीति"
> महाराणा प्रताप कोल्यारी से कुम्भलगढ़ पधारे
कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप ने अपने सैन्य संगठन को फिर से सुदृढ़ करना प्रारम्भ किया
> महाराणा प्रताप की कुल फौज 3,000 व अकबर की कुल फौज 2,00,000 थी, जिसके अलावा तकरीबन सारे राजा-महाराजा उसके मातहत थे, इसलिए आमने-सामने की लड़ाई सम्भव न थी
> महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ में अपनी सैनिक नीति बनाई कि जिसे जीता न जा सके, उसके आगे जान देना व्यर्थ है, परन्तु न उसे चैन से कहीं ठहरने दिया जाए और न ही जहां भी उसका कब्जा ढीला दिखाई दे, उसे उस जगह टिकने दिया जाए
> छापामार युद्ध के साथ ही शुरु हुआ महाराणा प्रताप, उनके परिवार व उनके साथियों का भीषण संघर्षपूर्ण जीवन
"ए हाय जता करता पगल्यां,
फूलां री कंवळी सेजां पर |
बै आज रुळै भूखा-तिसियां,
हिन्दवाणै सूरज रा टाबर ||"
> मेवाड़ का राजघराना हिन्दुस्तान के सबसे समृद्ध राजघरानों में से एक था, जिसकी अमीरी का बखान मुगल भी करते थे | राणा सांगा के समय 10 करोड़ सालाना आमदनी वाला मुल्क अब लगातार संघर्ष से जर्जर हो चुका था |
> विश्व के सबसे प्राचीन राजघराने के स्वाभिमानी सूरज ने जंगलों की तरफ प्रस्थान किया और प्रतिज्ञा की कि
"जब तक चित्तौड़ विध्वंस और हल्दीघाटी की पराजय का प्रतिशोध लेकर मेवाड़ को स्वाधीन नहीं करा देता, तब तक घास ही मेरा बिछौना, जंगल ही मेरे महल और पत्तल-दूने ही मेरे भोजन करने के पात्र होंगे"
> हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने फिर से राजपूतों और भीलों को इकट्ठा करना शुरु किया
इस युद्ध के बाद महाराणा को अफगानों का साथ नहीं मिला
> हल्दीघाटी का युद्ध अन्त नहीं, शुरुआत थी
* अगले भाग में मानसिंह द्वारा गोगुन्दा पर आक्रमण करने के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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