महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
रक्त तलाई (खमनौर) में स्थित कुंवर शालिवाहन तोमर की छतरी |
21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
* महाराणा प्रताप और हाकीम खां सूर की फौजी टुकड़ियाँ जब मिलीं, तब महाराणा प्रताप युद्धभूमि छोड़ने को तैयार नहीं थे
हाकीम खां सूर ने परिस्थिति को समझते हुए चेतक की रास अपने हाथ में लेकर उसका रुख पहाड़ियों की तरफ कर दिया
"हाकिम खां सूर का बलिदान"
> फारसी तवारिखों में अबुल फजल, बंदायूनी, निजामुद्दीन वगैरह ने हाकीम खां सूर के युद्ध मैदान में वीरगति पाने का उल्लेख नहीं किया है, पर मेवाड़ी ख्यातें उनके वीरगति पाने का उल्लेख करती हैं |
पठान हाकिम खां सूर |
> दरअसल हाकीम खां जख्म के चलते घाटी में एेसी जगह वीरगति को प्राप्त हुए जहां बंदायूनी की नजर नहीं पड़ी |
> मेवाड़ी ख्यातों के अनुसार हाकिम खां सूर रक्त तलाई से तीन किलोमीटर दूर वीरगति को प्राप्त हुए, जहां से उनके पार्थिव शरीर को उनका घोड़ा रक्त तलाई में ले आया |
रक्त तलाई स्थित हाकिम खां सूर की मजार |
> हाकीम खां सूर की मजार रक्त तलाई में स्थित है, जहाँ इन्हें तलवार समेत दफनाया गया, क्योंकि शहीद होने के बाद भी इस अफगान वीर के हाथ से तलवार नहीं छुड़ाई जा सकी |
"झाला मान का बलिदान"
> झाड़ौल के झाला मान/झाला बींदा महाराणा प्रताप के छत्र-चँवर धारण कर बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
महाराणा प्रताप के छत्र-चँवर धारण करते हुए झाला मान |
> रक्त तलाई (खमनौर) में झाला मान की छतरी अब तक मौजूद है
रक्त तलाई स्थित झाला मान की छतरी |
> झाला मान के पीछे झाड़ौल में इनकी दो रानियाँ सती हुईं, जिनके नाम इस तरह है :-
१) रामपुरा की हरकंवर चन्द्रावत (उदयसिंह जी की पुत्री)
२) जुनिया की राजकंवर राठौड़ (पृथ्वीसिंह जी की पुत्री)
"तोमर वंश का बलिदान"
> ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर ने अपने 3 पुत्रों (कुंवर शालिवाहन, कुंवर भान, कुंवर प्रताप) व एक पौत्र (धर्मागत) व 300 तोमर साथियों के साथ युद्ध में भाग लिया और सभी वीरगति को प्राप्त हुए
> हल्दीघाटी युद्ध में तोमर वंश अन्त तक टिका रहा
> राजा रामशाह तोमर आमेर के जगन्नाथ कछवाहा के साथ मुकाबले में वीरगति को प्राप्त हुए
> महाराणा प्रताप के बहनोई कुंवर शालिवाहन तोमर महाभारत के अभिमन्यु की तरह लड़ते हुए सबसे अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए
> प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है "यहाँ राजा रामशाह तोमर ने जिस तरह अपना जज्बा दिखाया, उसको लिख पाना मेरी कलम के बस की बात नहीं | रामशाह अपने तीन बेटों समेत बहादुरी से लड़ता हुआ दोजख में गया | उसके खानदान का कोई वारिस नहीं बचा"
राजा रामशाह तोमर |
(हालांकि बंदायूनी को इनकी ज्यादा जानकारी नहीं थी | असल में राजा रामशाह तोमर के एक पुत्र जीवित थे, जिन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था, ताकि वंश आगे बढ़ सके)
* अगले भाग में स्वामिभक्त चेतक के बलिदान, महाराणा प्रताप व महाराज शक्तिसिंह के मिलन के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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