महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 83
1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
* हल्दीघाटी युद्ध के कारण -
> अकबर के विशाल साम्राज्य में मेवाड़ जैसे छोटे से प्रदेश का स्वतंत्र अस्तित्व उसके लिए असहनीय था
> महाराणा प्रताप द्वारा गुजरात मार्ग पर आए दिन शाही फौज पर हमले व लूटमार
> महाराणा प्रताप द्वारा अकबर के 4 सन्धि प्रस्तावों को ठुकराना
> महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच अनबन
> अकबर व्यक्तिगत रुप से महाराणा प्रताप को झुकता हुआ देखना चाहता था
* मैग्जीन दुर्ग -
इस दुर्ग को अकबर ने 1571-72 ई. में अजमेर में बनवाया था | इसे अकबर का किला व अकबर का दौलत खाना भी कहते हैं |
अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध की रणनीति इसी दुर्ग में बनाई थी |
* अब्दुल कादिर बंदायूनी -
हल्दीघाटी में मुगलों की तरफ से लड़ने वाला प्रसिद्ध इतिहासकार | बंदायूनी ने इस युद्ध का वर्णन बिना पक्षपात के किया है |
(हल्दीघाटी युद्ध के दौरान मुगल पक्ष की ओर से जो तैयारियां वगैरह हुईं, उनका वर्णन मेवाड़ के ग्रन्थों में नहीं मिलता है, इसलिए फारसी तवारिखों का सहारा लिया गया है)
बंदायूनी लिखता है
"मैं काफिरों के खिलाफ लड़ना चाहता था, तो मेरे मन में राणा के खिलाफ जंग में शामिल होने की इच्छा हुई | मैं नकीब खां के पास गया और उससे कहा कि तुम शहंशाह से मेरे लिए सिफारिश करवाकर मुझे भी इस लड़ाई में शामिल करवा दो | नकीब खां ने मुझसे कहा कि अगर एक हिन्दु (मानसिंह) इस लड़ाई की कमान न सम्भालता, तो शहंशाह से इस लड़ाई में शामिल होने की गुहार लगाने वाला पहला शख्स मैं (नकीब खां) ही होता | नकीब खां के ऐसा कहने पर मैंने (बंदायूनी) कहा कि शहंशाह के सच्चे खिदमतगार की कमान में रहकर लड़ना मेरे लिए फख्र की बात होगी, चाहे वो हिन्दु हो या मुस्लिम, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता | हमारी नज़र सिर्फ हमारे मकसद पर होनी चाहिए | मेरी बातें सुनकर नकीब खां राज़ी हो गया और उसने जाकर शहंशाह से कहा कि बंदायूनी का इस जिहादी लड़ाई में शामिल होने का बहुत मन है"
बंदायूनी आगे लिखता है
"नकीब खां की सिफारिश के बाद शहंशाह ने मुझे बुलाया और पूछा कि 'राणा के खिलाफ लड़ने को तुम इतने उतावले क्यों हो रहे हो' | मैंने (बंदायूनी) कहा 'हुजूर, मेरी दाढ़ी राजपूतों के खून से रंगने को उतावली हो रही है | जंग के बाद मैं राजपूतों के खून से अपनी दाढ़ी रंगना चाहता हूं | मैं आपके रास्ते में आने वाली हर मुसीबत से झूझना चाहता हूं | मेरा मन है कि आपके खातिर ही मुझे नामवारी मिले या मौत"
शहंशाह ने मुझसे कहा कि
"खुदा ने करा तो तुम जीत की खबर लेकर लौटोगे' | शहंशाह ने मुझे इजाजत के साथ-साथ खुशी से 56 अशर्फियाँ भी दीं"
अब्दुल कादिर बदायूंनी ने शैख अब्दुल नबी से भी विदा ली | यहां बंदायूनी लिखता है
"मैं नकीब खां से पहले सिफारिश की खातिर शैख अब्दुल नबी के पास गया था, पर उसने मुझे ये काम करने से मना कर दिया, क्योंकि वह मानसिंह की कमान में रहकर न खुद लड़ना चाहता था और न मुझे भेजना चाहता था | फिर भी शहंशाह से इजाजत मिलने के बाद मैं अब्दुल नबी से विदा लेने पहुंचा, तो अब्दुल नबी ने मुझसे कहा कि
'जब दोनों फौजों में जंग हो तब मुझे भी याद रखना और मेरी तरफ से भी दुआ मांगना | एेसे वक्त मुझे भूलना मत | क्योंकि पैगम्बर ने जंग के दौरान दुआ मांगने का सबसे सही वक्त बताया है' |"
बंदायूनी ने फातिहा पढ़ा और हथियार-घोड़ा लेकर निकल पड़ा
बंदायूनी ने इस युद्ध को "गोगुन्दा का युद्ध" कहा
> अगले भाग में अकबर द्वारा मानसिंह को हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व सौंपने और हल्दीघाटी युद्ध के सही स्थान के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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