Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 3

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 3


* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 67

9 मई, 1540 ई.

"महाराणा प्रताप का जन्म"

* एक ओर चित्तौडगढ़ के दुर्ग पर मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह का पुन: अधिकार हुआ, तो दूसरी ओर इसी शुभ घड़ी में कुम्भलगढ़ दुर्ग के एक भाग कटारगढ़ में महारानी जयवन्ता बाई के गर्भ से महाराजकुमार प्रतापसिंह का जन्म हुआ

विक्रमी संवत के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया (रविवार) को सूर्योदय से 47 घड़ी 13 पल गये हुआ था

"माई एहड़ा पूत जण,
जेहड़ा राणा प्रताप |
अकबर सूतो औंझके,
जाण सिराणे सांप ||"

"भाग हूँ न ई भड़ मिले,
मिले न तप रे ताप |
अणगिण माँ जीवित जले,
जद जनमे परताप ||"
कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित महाराणा प्रताप का जन्म स्थान


> महाराणा प्रताप का एक जन्म स्थान पाली में स्थित जूनी कचहरी में भी बताया जाता है, जो कि सही नहीं है

* महारानी जयवन्ता बाई -

ये महाराणा उदयसिंह की पत्नी व मेवाड़ की पटरानी थीं | इनका नाम विवाह से पूर्व जीवन्त कंवर था | ये पाली-जालौर के अखैराज सोनगरा चौहान की पुत्री थीं | इन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में कईं कष्ट देखे | ये कुंवर प्रताप की आदर्श थीं |

* महाराणा उदयसिंह -

इनका जन्म 1522 ई. में हुआ | ये महाराणा सांगा व महारानी कर्णावती के पुत्र थे | इनका आरम्भिक जीवन काफी कष्टप्रद रहा |

* गुरु राघवेन्द्र - ये कुंवर प्रताप व कुंवर शक्तिसिंह के गुरु थे | हालांकि इन गुरु का नाम मेवाड़ के ग्रन्थों में नहीं मिलता, पर कुछ किताबों में जरुर इनका नाम लिखा है |

* कुंवर शक्तिसिंह - इनका जन्म 1540 ई. में हुआ | बचपन से इनकी अपने पिता महाराणा उदयसिंह से अनबन थी | हालांकि इन्हें राजगद्दी का कोई मोह नहीं था | इनके वंशज शक्तावत कहलाए |

* वीरमदेव - ये कुंवर शक्तिसिंह के सगे भाई थे | इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं | जब महाराणा प्रताप छापामार युद्धों में व्यस्त थे, उस कठिन समय में 15 वर्षों तक वीरमदेव ने महाराणा प्रताप के परिवार की रक्षा की | इनके पास 500 सैनिक हमेशा रहते थे | वीरमदेव ने महाराणा प्रताप के परिवार के किसी भी सदस्य को आंच तक नहीं आने दी | इनको घोसुण्डा की जागीर मिली |

1542 ई.

* मुगल बादशाह हुमायूं की बेगम हमीदा बानो ने अमरकोट में जलाल को जन्म दिया, जो बाद में अकबर के नाम से मशहूर हुआ

1544 ई.

* गिरीसुमेल का युद्ध -

ये युद्ध अफगान बादशाह शेरशाह सूरी और मारवाड़ के राव मालदेव के बीच हुआ | मारवाड़ की पराजय हुई |

पाली-जालौर मारवाड़ का हिस्सा था, इसलिए जालौर के अखैराज सोनगरा चौहान (महाराणा प्रताप के नाना) मारवाड़ की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए |

(कुछ इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के समय तक अखैराज सोनगरा चौहान का जीवित रहना लिखा है, पर ये सही नहीं है)

* अखैराज सोनगरा चौहान के 6 पुत्र / महाराणा प्रताप के मामा :-

१) मानसिंह सोनगरा :- इन्होंने मेवाड़ के अन्य सर्दारों के साथ मिलकर जगमाल को राजगद्दी से हटाकर महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासक बनाया | मानसिंह सोनगरा हल्दीघाटी युद्ध में काम आए | इनके पुत्र जसवन्त सोनगरा हुए |

२) भाण सोनगरा :- ये कुम्भलगढ़ युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ते हुए काम आए | इनकी एक पुत्री का विवाह मारवाड़ के मोटा राजा उदयसिंह से हुआ |

३) उदयसिंह सोनगरा

४) भोजराज सोनगरा :- ये कूंपा महाराजोत के यहां रहते थे व उन्हीं के साथ किसी लड़ाई में काम आए

५) जयमल सोनगरा :- ये बीकानेर रहते थे

६) रतनसी सोनगरा :- ये जसवन्त मानसिंहोत के यहां रहते थे

24 जून, 1547 ई.

* भारमल कावड़िया के पुत्र भामाशाह कावड़िया का जन्म

> अगले भाग में महाराणा प्रताप के पहले युद्ध "जैताणा के युद्ध" के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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