Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 47



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 111

1576 ई.

"महाराज शक्तिसिंह की भैंसरोडगढ़ विजय व महाराणा से भेंट"


महाराज शक्तिसिंह महाराणा प्रताप से भेंट करने निकले | उन्हें खाली हाथ जाना ठीक न लगा, तो रास्ते में 500 मेवाड़ी सैनिकों के साथ भैंसरोडगढ़ दुर्ग पर हमला कर दिया |

भैंसरोडगढ़ में तैनात मुगल सैनिक कत्ल हुए व महाराज शक्तिसिंह ने दुर्ग जीतकर महाराणा प्रताप को भेंट किया व महाराणा से पिछले गुनाहों की क्षमा मांगी |

महाराणा प्रताप ने महाराज शक्तिसिंह को क्षमा किया व भैंसरोडगढ़ दुर्ग फिर से शक्तिसिंह को दे दिया

साथ ही महाराणा प्रताप ने शक्तिसिंह जी को एक हाथी व एक घोड़ा भी दिया

महाराणा प्रताप की माता जयवन्ता बाई इसी दुर्ग में रहती थीं, क्योंकि वे शक्तिसिंह जी को भी बहुत स्नेह करती थीं व उम्र की अधिकता के कारण महाराणा प्रताप के साथ जंगलों में नहीं रह सकती थीं |

"चारण कवि माला सांदू का पश्चाताप"

चारण कवि माला सांदू महाराणा प्रताप से भेंट करने मेवाड़ आए | माला सांदू महाराणा प्रताप के विरोधी पक्ष से थे |

माला सांदू के लिखे हुए दोहे, जिनमें उन्होंने पश्चाताप की बातें लिखी है :-

"मह लागौ पाप अभनमा मोकल,
पिंड अदतार भेटतां पाप |
आज हुआ निकलंक अहाडा,
पेखै मुख तांहणे प्रताप ||

चढता कलजुग जोर चढतौ,
घणा असत जाचतौ घणौ |
मिल तां समै राण मेवाड़ा,
टलियौ प्राछत देह तणौ ||

स्रग भ्रतलोक मुणै सीसोदा,
पाप गया ऊजमै परा |
होतां भेट समै राव हीदू,
हुवा पवित्र संग्रामहरा ||

ईखे तूझ कमल ऊदावत,
जनम तणों गो पाप जुवौ |
हैकण बार ऊजला हीदू,
हर सूं जाण जुहार हुवौ ||"

अर्थात्

"हे महाराणा प्रताप ! कलियुग के जोर से मिथ्यावादी एवं अधर्मी राजाओं से याचना करने एवं मिलने से मुझ पर पाप चढ़ गया था, लेकिन आपके उज्जवल मस्तक का एक बार दर्शन करने मात्र से ही ईश्वर के दर्शन करने की तरह मैं उस पाप से मुक्त हो गया हूँ"

* अगले भाग में अकबर द्वारा महाराणा प्रताप के खिलाफ मेवाड़ में जगह-जगह थाने बिठाने के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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