Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 26

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास

पठान हाकिम खां सूर

* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 90

21 जून, 1576 ई.

"हल्दीघाटी का युद्ध"

* ये युद्ध सुबह लगभग 9-10 बजे से दोपहर 2-3 बजे तक 5 घन्टे तक चला

मानसिंह के फौज जमाने के 3 घण्टे बाद हल्दीघाटी के मुहाने से एक हाथी मेवाड़ का झण्डा लहराता हुआ बाहर निकला और हाथी के पीछे हरावल की कमान सम्भाले हाकिम खां सूर थे | फिर महाराणा प्रताप ने युद्धभूमि में प्रवेश किया |

* महाराणा प्रताप की सेना में भील, राजपूत, लुहार, ब्रामण, अफगान आदि थे

(हालांकि लुहार जाति के लोगों का काम महाराणा प्रताप व मेवाड़ी सेना के लिए हथियार बनाना था, फिर भी कुछ लुहारों ने युद्ध में भाग लिया | ये जाति आज भी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करती है)

* अबुल फजल लिखता है "मेवाड़ी फौज मैदान में जंग के मुताबिक सही नहीं जमाई गई थी, पर राणा ने गज़ब की तेजी दिखाते हुए अपनी फौज को जंग के मुताबिक जमा दी | सर झुकाने या जान देने का बाज़ार खुल गया | यहाँ जान सस्ती और इज्जत महंगी थी"

"हाकिम खां सूर और सैयद हाशिम के बीच हरावल की लड़ाई"

> मेवाड़ी फौज की हरावल में हाकिम खां सूर के नेतृत्व में रावत कृष्णदास चुण्डावत, ठाकुर भीमसिंह डोडिया, रावत सांगा चुण्डावत, ठाकुर रामदास राठौड़ थे

> महाराणा प्रताप ने सबसे पहले मुगल फौज के हरावल दस्ते पर हमला करने के लिए हाकिम खां सूर को फौजी टुकड़ी समेत आगे भेजा

> पठान हाकिम खां सूर ने अपनी फौजी टुकड़ी को आक्रमण का आदेश देते वक्त कहा "आज देखता हूं दुश्मन फौज का कौनसा सिपाही हाकिम खां के हाथ से उसकी तलवार को अलग करता है, खुदा कसम आज इस पठान की तलवार मरने पर भी हाथ से नहीं छूटेगी"

> अबुल फजल लिखता है "दो खूनी समन्दरों की भिड़न्त ने सबको हैरान कर दिया | ज़मीन लाल रंग की लहरों से सन गई"

> मेवाड़ की तरफ से हकीम खां सूर मुगल फौज की हरावल से भिड़ गए

मुगल फौज की हरावल का नेतृत्व करने वाला सैयद हाशिम घोड़े से गिर गया | सैयद राजू ने उसे फिर घोड़े पर बिठाया |

> युद्ध में भाग लेने वाला मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है

"हाकीम खां सूर नामी अफगान ने पहाड़ों से निकलकर हमारी हरावल पर हमला किया | उसके हमले से शाही फौज की हरावल में गड़बड़ी मच गई और हमारी हरावल पूरी तरह पस्त होकर भाग निकली | शाही फौज की हरावल ने 5-6 कोस तक पीछे मुड़कर भी नहीं देखा, पता नहीं मौत कहाँ से बरस पड़े | शाही फौज के बाईं तरफ तैनात राजा लूणकरण कछवाहा अपने साथी राजपूतों समेत समेत भेड़ों के झुण्ड की तरह भागकर हरावल के बीच में से निकलकर शाही फौज के दाहिनी तरफ खड़े बहादुर सैयदों के पीछे जाकर छिप गया"

"बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ का बलिदान"

मुगल फौज की हरावल में केवल जगन्नाथ कछवाहा ही नहीं भागा था

वीर जयमल राठौड़ के पुत्र ठाकुर रामदास राठौड़ जगन्नाथ कछवाहा के साथ मुकाबले में वीरगति को प्राप्त हुए

ठाकुर रामदास राठौड़

जगन्नाथ कछवाहा गम्भीर रुप से घायल हुआ

अबुल फजल लिखता है "जगन्नाथ कछवाहा तकरीबन मरने ही वाला था कि मानसिंह ने आगे बढ़कर उसे बचाया और उसे पीछे ले गया"

"सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया का बलिदान"

मानसिंह जब जगन्नाथ कछवाहा को बचाने आगे आया तब उसका मुकाबला ठाकुर भीमसिंह डोडिया से हुआ


भीमसिंह डोडिया ने प्रतिज्ञा की थी की "मानसिंह जिस हाथी पर बैठकर आएगा, उसी पर भाला मारुंगा"

भीमसिंह डोडिया ने हाथी पर भाला मारा, पर इस मुकाबले में वे वीरगति को प्राप्त हुए

* अगले भाग में हाकिम खां सूर के हमले की सफलता के बाद महाराणा प्रताप के नेतृत्व वाली मेवाड़ी फौज की दूसरी टुकड़ी के भीषण आक्रमण के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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