Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 17

महाराणा प्रताप के इतिहास


* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 81

"महाराणा प्रताप द्वारा गुजरात के बादशाही इलाकों में लूटमार"

> यूरोप के साथ मुगलों का व्यापार मेवाड़ के भीतर होकर सूरत या किसी और बन्दरगाह से होता था | महाराणा प्रताप और उनके साथी गुजरात मार्ग को आए दिन बन्द कर देते थे व मुगलों की सामग्री लूट लेते, जिससे अकबर का यूरोप के साथ व्यापार ठप्प होने लगा |

अकबर ने महाराणा प्रताप के बहनोई बीकानेर नरेश राजा रायसिंह को गुजरात मार्ग खोलने व लूटमार रोकने के लिए नियुक्त किया | महाराणा प्रताप ने अपने बहनोई से लड़ना ठीक न समझा, पर राजा रायसिंह के जाते ही महाराणा ने फिर गुजरात मार्ग बन्द कर लूटमार शुरु की |

कर्नल जेम्स टॉड लिखता है "मुगल दरबार और यूरोप के बीच जो व्यापार सूरत व अन्य बन्दरगाहों से मेवाड़ में से होकर चालू हो गया था, प्रताप उसे बीच में रोककर लूटने लगा"

> महाराणा प्रताप ने गुजरात के अहमदाबाद शहर में लूटमार शुरु की

महाराणा ने अहमदाबाद की बादशाही चौकियों पर एक-एक कर हमले किए और चौकियां लूटकर जला दी

(महाराणा प्रताप द्वारा अहमदाबाद में लूटमार करने के बारे में अमरकाव्य ग्रन्थ में लिखा गया है | इस ग्रन्थ के अनुसार महाराणा प्रताप के लगातार हमलों से अहमदाबाद नगर लगभग नष्ट हो चुका था | अमरकाव्य ग्रन्थ महाराणा प्रताप के देहान्त के कुछ ही वर्षों बाद लिखा गया था)

(महाराणा द्वारा गुजरात में लूटमार हल्दीघाटी युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण था)

"सम्भावित युद्ध को ध्यान में रखते हुए महाराणा प्रताप की तैयारियाँ"

29 अक्टूबर, 1574 ई.

* इस दिन के घटनाक्रम का एक ताम्रपत्र मिला है, जिसके अनुसार "महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के मुहाने पर 300 घुड़सवार तैयार रखने के लिए घुड़सवार नेता जोशी पूनो नाम के एक व्यक्ति को कुम्भलगढ़ जिले के ढोल गांव की जागीर दी"

इस ताम्रपत्र का अर्थ यह है कि महाराणा प्रताप ने फौज व घोड़ों की कमी की वजह से 300 घुड़सवार तैयार रखने को कहा होगा | हालांकि ये घटना हल्दीघाटी युद्ध से 2 वर्ष पहले की है | मतलब ये कि महाराणा प्रताप पहले ही जान चुके थे कि अब अकबर की ओर से हमला जरुर होगा, क्योंकि महाराणा प्रताप अकबर के 4 सन्धि प्रस्तावों को ठुकरा चुके थे |

* मुगलों से युद्ध निकट जानकर महाराणा प्रताप ने गिरवा से कुम्भलगढ़ और उसके आगे तक के पहाड़ी इलाकों में मोर्चाबन्दी कर दी

कुम्भलगढ़, जो कि इस वक्त मेवाड़ की राजधानी थी, वहां रक्षा प्रबन्ध दृढ़ किया गया

महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी दर्रे की रक्षा खातिर भी वहां कुछ सैनिक तैनात कर दिए

महाराणा प्रताप द्वारा तैनात किए गए मेवाड़ी योद्धा

* महाराणा प्रताप ने अनुभवी व कुछ महत्वपूर्ण लोगों को नये-नये पट्टे जागीर में दिए और बदले में उन्हें मेवाड़ की सेवा में रख लिया

* महाराणा ने मेवाड़ के मैदानी इलाकों में रहने वाली प्रजा को सख्त आदेश दिए कि जल्द से जल्द सभी प्रजाजन मेवाड़ के पर्वतीय इलाकों में चले जावें, अन्यथा मृत्युदण्ड दिया जावेगा

(महाराणा नहीं चाहते थे कि चित्तौड़ विध्वंस जैसी घटना मेवाड़ में फिर से हो, इस खातिर ऐसे सख्त आदेश दिए गए)

* महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के मैदानी इलाकों में फसल उगाने पर भी पाबन्दी लगा दी, ताकि मुगल फौज जब मेवाड़ आए, तो वे रसद का इन्तजाम ना कर पाए

महाराणा ने खेती करने वालों को भी मृत्युदण्ड की सजा दिए जाने के आदेश जारी किए

साथ ही साथ महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के मैदानी इलाकों में जो फसल पहले से उगी हुई थी, वह नष्ट कर दी

> अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा एक चरवाहे को मृत्युदण्ड देने व अकबर द्वारा हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व की गई तैयारियों के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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