Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 29

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 93

21 जून, 1576 ई.

"हल्दीघाटी का युद्ध"

"बहलोल खां वध"


* मेवाड़ी फौज के आक्रमण से मानसिंह, आसफ खां समेत बड़े-बड़े सिपहसालार भाग कर दायीं तरफ खड़ी सैयदों की फौजी टुकड़ी के पीछे छिप गए

महाराणा प्रताप तोमर वंश की फौजी टुकड़ी को लेकर सैयदों के सामने आए और महाराणा ने गरजकर कहा "आज सैयदों की जमात भी प्रतापसिंह को मानसिंह तक पहुंचने से नहीं रोक सकती"

इतना कहकर महाराणा प्रताप ने सैयदों पर आक्रमण किया | रामशाह तोमर के नेतृत्व वाली तोमर वंश की टुकड़ी ने सैयदों को युद्ध में उलझाए रखा, तब तक महाराणा प्रताप अकेले ही मुगल फौज को चीरते हुए कछवाहों की भारी जमात के बीच हाथी पर सवार मानसिंह के सामने पहुंचे |

मानसिंह के हाथी के ठीक आगे उजबेक जंगजू बहलोल खां घोड़े पर सवार था

महाराणा प्रताप ने बहलोल खां पर ऐसा भीषण प्रहार किया कि महाराणा की तलवार से बहलोल खां, उसके कवच व घोड़े के दो टुकड़े हो गए

इस भयानक भर्त्सना से मानसिंह के इर्द-गिर्द खड़े मुगल व कछवाहों में भगदड़ मच गई


* हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से भाग लेने वाले चारण कवि गोरधन बोगसा ने बहलोल खां के वध का आँखों देखा वर्णन चार दोहों के माध्यम से लिखा है, जो इस तरह हैं :-

1) गयंद मान रै मुहर ऊभौ हुतो दुरद गत,
सिलहपोसां तणा जूथ साथै |
तद बही रुक अणचूक पातल तणी,
मुगल बहलोल खां तणै माथै ||

(आमेर के मानसिंह कछवाहा के आगे अपने मददगार सवारों समेत खड़े बहलोल खां पर महाराणा प्रताप की तलवार बही)

2) तणै भ्रमऊद असवार चेटक तणै,
घणै मगरुर बहरार घटकी |
आचरै जोर मिरजातणैं आछटी,
भांचरै चाचरै बीज भटकी ||

(उदयसिंह के पुत्र चेटक सवार महाराणा प्रताप ने शरीर को चीरने वाली तलवार को बहुत जोश से भ्रमाकर अपने हाथ के जोर से मिरजा पर मारी, तो 2 ठठेरे की एरण पर बिजली गिरे ऐसे काट कर निकल गई)

3) सूरतन रीझतां भीजतां सैलगुर,
पहां अन दीजतां कदम पाछे |
दांत चढतां जवन सीस पछटी दुजड़,
तांत सावण ज्युहीं गई जाछे ||

(सूर्य प्रसन्न होने लगा, बड़े-बड़े पहाड़ रक्त से भीग गए, अन्य राजा अपने पैर पीछे देने लगे, उस समय महाराणा की तलवार शत्रु को इस तरह काटते हुए निकल गई, जैसे साबुन को तांत काटती है)

4) वीर अवसाण केवाण उजबक बहे,
राण हथबाह दुय राह रटियो |
कट झलम सीस बगतर बरंग अंग कटै,
कटै पाषर सुरंग तुरंग कटियो ||

(महाराणा प्रताप के इस बाहुबल की हिन्दू-मुस्लिम दोनों ने ही बड़ी प्रशंसा की | महाराणा के वार से बहलोल खां का टोप कट, शीष कट, बख्तर कट, शरीर कट, पाखर कटकर सुरंग रंग वाला घोड़ा तक कट गया)


* वीर सतसई में दोहा लिखा है :-

जरासंध बहलोल के, वध में यह व्यतिरेक।
भीम कियौ द्वै भुजन तें, पातल ने कर एक।।

(महाभारत के जरासंध व हल्दीघाटी के बहलोल खां, दोनों के ही युद्ध में दो टुकड़े हुए | परन्तु भीम ने जरासंध को मारने के लिए अपने दोनों हाथों का प्रयोग किया, जबकि महाराणा प्रताप ने एक ही हाथ से बहलोल खां को चीर दिया)


* अगले भाग में महाराणा प्रताप व मानसिंह की आमने-सामने की लड़ाई के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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