Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 4

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 4

कुंवर प्रताप अपनी माता जयवन्ता बाई जी के साथ

* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 68

1551 ई.

* जैसलमेर महारावल लूणकरण का देहान्त | इनके पुत्र कुंवर मालदेव हुए, जो महाराणा प्रताप के बहनोई थे |

* कुंवर प्रताप कुछ वर्ष तक कुम्भलगढ़ में रहे | फिर चित्तौड़गढ़ में पधारे |

* कुंवर प्रताप ने मेड़ता के जयमल राठौड़ से तलवारबाजी व भाला चलाने की कला सीखी

* रानी धीरबाई भटियाणी को कुंवर प्रताप की वीरता से ईर्ष्या हुई, तो महाराणा उदयसिंह ने अपनी प्रिय रानी की बात मानते हुए कुंवर प्रताप को तलहटी में रहने के लिए भेज दिया | महाराणा उदयसिंह ने 10 राजपूतों को भी कुंवर प्रताप की सेवा खातिर तलहटी भेज दिया | इसी तरह कुंवर प्रताप का सम्पर्क भीलों से हुआ |

कुछ समय बाद महारानी जयवन्ता बाई अपने पुत्र कुंवर प्रताप के साथ दुर्ग के नीचे स्थित महल में रहने लगीं | इसी महल के पास भामाशाह भी रहते थे | कुंवर प्रताप और भामाशाह बचपन के मित्र थे |

22 मई, 1554 ई.


* महाराणा उदयसिंह व रानी धीरबाई भटियाणी के पुत्र जगमाल का जन्म

जगमाल महाराणा उदयसिंह का 9वां पुत्र था

1555 ई.

"जैताणा का युद्ध"

(कुंवर प्रताप का प्रथम युद्ध)

महाराणा उदयसिंह ने डूंगरपुर रावल आसकरण पर कुंवर प्रताप के नेतृत्व में सेना भेजी

ये युद्ध बांसवाड़ा के आसपुर में सोम नदी के किनारे हुआ

डूंगरपुर के रावल आसकरण ने राणा सांवलदास के नेतृत्व में फौज भेजी

राणा सांवलदास का भाई कर्णसिंह कुंवर प्रताप के हाथों मारा गया

मेवाड़ की ओर से कोठारिया व केलवा के जग्गा जी वीरगति को प्राप्त हुए | जग्गा जी के पुत्र पत्ता चुण्डावत हुए, जो चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आए |

मेवाड़ की विजय हुई और 15 वर्ष के कुंवर प्रताप ने वागड़ के बड़े हिस्से पर अधिकार कर मेवाड़ में मिला लिया |

ये कुंवर प्रताप के कुंवरपदे काल (राज्याभिषेक से पूर्व) की पहली उपलब्धि थी

* कुंवरपदे काल (राज्याभिषेक से पूर्व) की दूसरी उपलब्धि -

कुंवर प्रताप ने छप्पन के राठौड़ों को पराजित कर छप्पन (56 इलाकों के समूह) पर अधिकार कर लिया
कुंवर प्रताप जयमल राठौड़ से तलवारबाजी सीखते हुए

बांसवाड़ा-प्रतापगढ़ के बीच का भाग छप्पन कहलाता है

27 जनवरी, 1556 ई.

* मुगल बादशाह हुमायूं की पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर मृत्यु हुई

14 फरवरी, 1556 ई.

* बैरम खां के संरक्षण में हुमायूं के बेटे अकबर की गद्दीनशीनी

25 जुलाई, 1556 ई.

* महाराणा उदयसिंह व रानी धीरबाई भटियाणी के दूसरे पुत्र सागरसिंह का जन्म

सागरसिंह मेवाड़ के लिए संकट का कारण बना | इसने अकबर व जहांगीर का साथ दिया |

1556-57 ई.

* अकबर की पानीपत, मेवात, जैतारण, अजमेर व नागौर विजय

ये सभी विजय अकबर ने बैरम खां के संरक्षण से हासिल की और पानीपत के युद्ध के बाद अकबर ने गाज़ी की उपाधि धारण की

1557 ई.

* हरमाड़े का युद्ध :- हाजी खां व राव मालदेव की सम्मिलित सेना द्वारा महाराणा उदयसिंह की मेवाड़ी सेना की पराजय

इस युद्ध में कुंवर प्रताप ने भाग नहीं लिया था

* इसी वर्ष महाराणा उदयसिंह ने मीराबाई को चित्तौड़गढ़ बुलाने के लिए ब्राम्हणों को भेजा | मीराबाई सदा-सदा के लिए अपने कान्हा में विलीन हो गईं | मीराबाई कुंवर प्रताप की बड़ी माँ थीं |

> अगले भाग में महाराणा प्रताप की रानियों व उनके पुत्र-पुत्रियों के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

No comments:

Post a Comment