Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 43



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 107

सितम्बर, 1576 ई.

"महाराणा प्रताप की गोगुन्दा विजय"


> महाराणा प्रताप कुम्भलगढ़ से कोल्यारी पहुंचे और वहां से गोगुन्दा की तरफ कूच किया

> महाराणा ने गोगुन्दा के महलों पर अचानक हमला कर दिया

भीषण मारकाट के बाद महाराणा प्रताप ने अपने निवास स्थान गोगुन्दा पर विजय प्राप्त की

> महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा में मांडण कूंपावत को नियुक्त किया
गोगुन्दा के राजमहल

> गोगुन्दा के पास मजेरा गाँव में रणेराव के तालाब के पास में महाराणा प्रताप ने सैनिक छावनी बनाई और वहाँ से मेवाड़ के मैदानी भागों में तैनात मुगल थाने उठाए

> गोगुन्दा के युद्ध में कईं मुगल कत्ल हुए और बहुत से भाग निकले

> महाराणा प्रताप चाहते थे कि अकबर स्वयं मेवाड़ आए, इसलिए उन्होंने कुछ शाही सिपहसालारों को छोड़ते हुए व्यंग भरे शब्दों में कहा "अपने बादशाह से कहना कि राणा कीका ने याद किया है"

गोगुन्दा की भीषण पराजय और महाराणा के व्यंग ने मुगल बादशाह अकबर को मेवाड़ आने के लिए विवश कर दिया

अकबर ने मेवाड़ कूच करने की तैयारियाँ शुरु कर दी

"महाराणा प्रताप का कुम्भलगढ़ प्रस्थान"

> महाराणा प्रताप गोगुन्दा से कुम्भलगढ़ पधारे व कुम्भलगढ़ को मेवाड़ की नई राजधानी बनाई

> कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप द्वारा जारी किए गए तीन ताम्रपत्र मिले हैं, जिनमें पीपली व संथाणा गाँव बलभद्र को देने के आदेश थे

(इन ताम्रपत्रों के बारे में अगले भाग में विस्तार से लिखा जाएगा)

> महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ में महता नर्बद को नियुक्त किया

"महाराणा प्रताप द्वारा अजमेर में लूटमार"

> इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप ने अजमेर के इलाकों में मुगल छावनियों पर हमले किए

> ये जानते हुए भी कि अकबर ने चित्तौड़ में मन्दिरों के साथ क्या किया था, महाराणा प्रताप अजमेर ख्वाजा की दरगाह को बिना कोई नुकसान पहुंचाये मेवाड़ लौट आए

"अकबर का मेवाड़ अभियान"

26 सितम्बर, 1576 ई.

* महाराणा द्वारा लूटमार की गतिविधियां बढ़ाने पर अकबर अजमेर पहुंचा

11 अक्टूबर, 1576 ई.


* गोगुन्दा की पराजय के एक माह बाद ही अकबर एक भारी भरकम फौज के साथ अजमेर से मेवाड़ के लिए निकला

अकबर की फौज में तकरीबन 60,000 बादशाही सैनिक, कईं सिपहसालार, सैकड़ों हाथी व 2-4 हजार नौकर चाकर थे

इसके विपरीत इस वक्त महाराणा प्रताप की फौज 3,000 थी, जिसमें तकरीबन आधे भील थे

* अकबर के मेवाड़ जाने का हाल अबुल फजल ने कुछ इस तरह लिखा है कि

"मेवाड़ के बागी राणा का उत्पात हर दिन बढ़ता जा रहा था | शहंशाह के हुक्म मानने के बजाय गुरुर में डूबे राणा ने पहाड़ी लड़ाई इख्तियार करते हुए तबाही मचा रखी थी | राणा और उसके मुल्क को बरबाद करने की खातिर शहंशाह ने फौज को मेवाड़ जाने का हुक्म दिया | एक बहुत बड़ी फौज इकट्ठी हुई | सारे फौजी आदमी और सिपहसालार सर से लेकर पांव तक लोहे के ज़िरहबख्तर पहने हुए थे | दूर से देखने पर ये लोग शीशे जैसे दिखने लगे थे | इस तरह शहंशाह ने मेवाड़ की तरफ कूच किया"

* अगले भाग में कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप द्वारा जारी ताम्रपत्रों के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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