Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 42



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 106

"गोगुन्दा का युद्ध"

अगस्त, 1576 ई.


* गोगुन्दा में एक बहुत बड़ा थाना तैनात कर मानसिंह कछवाहा, आसफ खां व काजी खां अकबर के पास चले गए, जहां मानसिंह और आसफ खां की कुछ दिनों तक ड्योढ़ि बन्द कर दी गई अर्थात् शाही दरबार में आने पर प्रतिबन्ध लगाया गया

(ये प्रतिबन्ध इसलिए लगाया गया, क्योंकि अकबर इस बात से नाराज था कि मानसिंह ने महाराणा के खौफ से मेवाड़ में लूटमार नहीं की)

> अकबर का दरबारी लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है "इस वक्त गोगुन्दा में मुगल फौज को जो तकलीफें हो रही थीं, उनकी खबर शहंशाह के पास पहुंची | शहंशाह ने हुक्म दिया कि मानसिंह, आसफ खां और काजी खां बिना किसी को साथ लाये फौरन हाजिर हो जाये | मानसिंह और आसफ खां की कुछ गुस्ताखियों की वजह से शहंशाह ने उनको शाही दरबार में आने से रोक दिया | दूसरी तरफ गाजी खां बदख्शी, मेहतर खां, अलीमुराद उजबेक, खांजकी तुर्क और मुझ (बंदायूनी) को इनाम दिए और ओहदे में तरक्की की | इन सबके अलावा जितने भी सिपहसालार राणा के खिलाफ जंग में थे, सबको बिना कोई सजा दिए छोड़ दिया"

(बंदायूनी के इस बयान से मालूम पड़ता है कि अकबर को हल्दीघाटी युद्ध से सिवाय नुकसान के कुछ हासिल नहीं हुआ)

> अकबर का दरबारी लेखक निजामुद्दीन अहमद बख्शी लिखता है "गोगुन्दा जाने वाले रास्ते इतने मुश्किल थे कि वहां रसद वगैरह पहुंच नहीं पा रही थी | हमारी फौज भूखी मरने लगी | शहंशाह ने मानसिंह को फौरन हाजिर होने का हुक्म दिया | शहंशाह ने तहकीकात करवाई की फौज का क्या हाल है, तो सच में पता चला कि फौज का हाल बहुत बुरा था, फिर भी मानसिंह ने राणा के मुल्क को नहीं लूटा | इस वजह से शहंशाह ने नाराज होकर मानसिंह को दरबार से निकाल दिया | कुछ दिन बाद शहंशाह ने मानसिंह को माफ कर फिर से राणा के मुल्क को बर्बाद करने मेवाड़ भेजा"

सितम्बर, 1576 ई.

> मानसिंह के चले जाने के बाद अकबर ने अपने खास सिपहसालारों को गोगुन्दा भेजा

इस वक्त हल्दीघाटी की लड़ाई लड़ने वाले जीतने भी मुगल जीवित बचे थे, वे सीकरी तो गए ही नहीं | ये सब गोगुन्दा में ही थे | इनके अलावा अलग से और फौज गोगुन्दा भेजी गई |

> महाराणा प्रताप ने अपने राजपूत व भील साथियों की मदद से मेवाड़ से आगरा जाने वाले पहाड़ी रास्ते व नाके बन्द करवा दिये, ताकि गोगुन्दा में तैनात मुगलों तक रसद का सामान ना पहुंचे व गोगुन्दा में तैनात मुगल मेवाड़ से बाहर ना जा पाए

> उदयपुर व खानपुर के इलाकों में महाराणा प्रताप स्वयं घूम-घूमकर देखरेख करते और मुगलों के गिरोह पर मौका देखकर हमले किया करते

अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है "राणा कीका (राणा प्रताप) ने उदयपुर और जौनपुर के बादशाही इलाकों में लूटमार करना शुरु कर दिया, जिससे शहंशाह का ध्यान इस तरफ गया"

(बंदायूनी ने जानकारी के अभाव में खानपुर की जगह गलती से जौनपुर का नाम लिख लिया)

> महाराणा प्रताप ने गोड़वाड़ के परगनों और पश्चिमी मेवाड़ के इलाकों में पूरी तरह नाकेबन्दी करवा दी

> गोगुन्दा में मुगलों के लिए रसद वगैरह आती, तो भील उसे रास्ते में लूट लिया करते

> बनजारे लोग जब भी इन इलाकों में आते, तो महाराणा के सैनिक उन्हें मुगलों के नजदीक भी नहीं जाने देते, क्योंकि मुगल हमेशा बनजारों की तलाश में रहते थे, ताकि उन्हें लूटकर रसद वगैरह ले सके

> मुगल गोगुन्दा में कैदियों की तरह रह रहे थे

* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा गोगुन्दा विजय, बादशाही इलाकों में भारी लूटमार व अकबर के मेवाड़ कूच करने के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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