Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग - 10

महाराणा प्रताप के इतिहास



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 74

"महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक (1572 ई.) के समय मेवाड़ के प्रमुख सामन्त"

> राजराणा बींदा झाला/झाला मान :- ये 150 झाला राजपूतों समेत महाराणा प्रताप व मेवाड़ की खातिर हर वक्त तैयार थे | इनके पिता राजराणा सुरतन सिंह झाला चित्तौड़गढ़ दुर्ग के सूरजपोल द्वार पर अकबर के हमले (1568 ई.) के समय काम आए थे |

> पानरवा के राणा पूंजा भील :- महाराणा प्रताप के पूर्व के शासकों के भीलों से सम्बन्ध इतने गहरे नहीं थे, लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने राज्याभिषेक से पहले ही भीलों का दिल जीत लिया था | राणा पूंजा की अगुवाई में भील महाराणा प्रताप की खातिर अपना सर्वस्व देने को तत्पर थे |
राणा पूंजा भील व राजराणा झाला मान

> रावत कृष्णदास चुण्डावत :- ये सलूम्बर के 7वें रावत साहब थे | ये चित्तौड़ के तीसरे साके में वीरगति पाने वाले रावत साईंदास चुण्डावत के भाई रावत खेंगार के पुत्र थे | रावत कृष्णदास चुण्डावत को शुरुआत में भांजगढ़ की जागीर मिली थी |

> बेगूं के पहले रावत गोविन्ददास चुण्डावत :- ये रावत खेंगार के दूसरे पुत्र थे | इनका अपने बड़े भाई रावत कृष्णदास चुण्डावत से जागीर सम्बन्धी विवाद हुआ, तो महाराणा ने इनको बेगूं की जागीर दे दी |

> देलवाड़ा के मानसिंह झाला :- ये जैतसिंह झाला के पुत्र व महाराणा प्रताप के बहनोई थे |

> पाली-जालौर के मानसिंह सोनगरा चौहान :- ये महाराणा प्रताप के सबसे बड़े मामा थे | ये 1564 ई. में मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ आए थे |

> कानोड़ के 5वें रावत नैतसिंह सारंगदेवोत :- ये अकबर के आक्रमण के समय महाराणा उदयसिंह के साथ चित्तौड़ छोड़कर चले गए थे | महाराणा उदयसिंह ने इनको महाराजकुमार प्रतापसिंह के साथ कुम्भलगढ़ दुर्ग में तैनात किया था, जहां इन्होंने हुसैन कुली खां को पराजित किया | रावत नैतसिंह के पिता रावत नरबद सारंगदेवोत बहादुरशाह गुजराती के हमले में चित्तौड़ के पाडनपोल दरवाजे पर काम आए |

> बेदला के बलभद्र सिंह चौहान :- ये महाराणा प्रताप के ससुर प्रतापसिंह चौहान के पुत्र थे |

> बिजौलिया के राव शुभकरण पंवार व इनके भाई पहाडसिंह पंवार :- ये दोनों महारानी अजबदे बाई के भाई थे |

> ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर व इनके पुत्र शालिवाहन तोमर :- शालिवाहन तोमर महाराणा प्रताप के बहनोई थे | ये पाण्डवों के वंशज थे |

> सरदारगढ़ के 8वें ठाकुर भीमसिंह डोडिया :- इनके पिता ठाकुर सांडा जी थे, जो चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आए |
ठाकुर भीमसिंह जी डोडिया

> भामाशाह कावडिया व ताराचन्द कावडिया :- ये दोनों सगे भाई थे व भारमल कावडिया के पुत्र थे | मेवाड़ राजघराने की सम्पत्ति को सम्भालकर ये उसमें से मेवाड़ का खर्च चलाया करते थे | साथ ही साथ ये दोनों भाई छापामार युद्धकला में भी निपुण थे |

भामाशाह कावडिया जी

> बीसलपुर के जागीरदार राव कल्ला देवड़ा :- ये महाराणा प्रताप के भाणजे थे | इनका वर्णन अगले भाग में सिरोही के युद्ध में किया जाएगा |

> देवगढ़ के पहले रावत सांगा चुण्डावत

> बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया राठौड़ व उनके भाई रामदास राठौड़ :- ये दोनों चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आने वाले वीरवर जयमल राठौड़ के पुत्र थे |

> धमोतर के दूसरे ठाकुर कांधल जी

> जवास के 9वें रावत बाघसिंह

> कोठारिया के 5वें रावत तातार खान चौहान

> घाणेराव के ठाकुर गोपालदास राठौड़ :- ये वीर जयमल राठौड़ के भाई प्रताप राठौड़ के पुत्र थे | प्रताप राठौड़ चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आए थे | ठाकुर गोपालदास ने महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया | इनके शरीर पर कईं घाव थे |

> आमेट के पहले रावत कर्णसिंह चुण्डावत :- ये चित्तौड़ के तीसरे साके में वीरगति पाने वाले वीरवर पत्ता चुण्डावत के पुत्र थे |

> ठाकुर कल्याणसिंह चुण्डावत :- ये पत्ता चुण्डावत के ज्येष्ठ पुत्र थे, लेकिन किसी कारण से आमेट की गद्दी पर इनके छोटे भाई कर्णसिंह बैठे |

* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा कल्ला देवड़ा को भेजकर सिरोही पर किए गए हमले के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

2 comments:

  1. आप लिखते हैं कि
    बेगूं के पहले रावत गोविन्ददास चुण्डावत :- ये रावत खेंगार के दूसरे पुत्र थे | इनका अपने बड़े भाई रावत कृष्णदास चुण्डावत से जागीर सम्बन्धी विवाद हुआ, तो महाराणा ने इनको बेगूं की जागीर दे दी |
    यह गलत है। गोविंद दास जी अपने जीव में कभी भी बेगू के रावत नही रहे। वे गुठलाई ( वर्तमान अठाना ) के रावत थे एवं उन्के पुत्र मेघ सिंह जी ( काली मेघ ) जी को बेगूँ की जागीर मिली।
    कृपीया गलती का सुधार करें ।

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  2. कृपया रावत खेंगार सिंह चुंडावत जी के 21 पुत्रों के नाम और वंशावली उपलब्ध कराए।

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