महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास
* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 91
21 जून, 1576 ई.
"हल्दीघाटी का युद्ध"
* हाकीम खां सूर के प्रारम्भिक हमले की सफलता के बाद महाराणा प्रताप की फौजी टुकड़ी ने मुगल फौज पर हमला किया
* महाराणा प्रताप ने चेतक पर सवार होकर अपनी फौज में घूम-घूमकर अपने ओजस्वी स्वरों में कहा "चित्तौड़ के साका में केसरिया करने वाले वीरों और जौहर करने वाली वीरांगनाओं की सौगन्ध हे तुम्हें, ऐसा आक्रमण करो कि तुर्कों की आने वाली नस्लें हल्दीघाटी को याद कर कांपती नज़र आए.... हर-हर महादेव"
"काजी खां पर हमला"
महाराणा प्रताप का मुकाबला काजी खां की फौजी टुकड़ी से हुआ | काजी खां पहले तो बहादुरी दिखाकर खड़ा रहा, पर एक अंगूठा कटते ही भाग निकला |
"शैखजादों पर हमला"
महाराणा प्रताप ने सीकरी के शैखजादों की फौजी टुकड़ी पर हमला किया
शैखजादों समेत उनका मुखिया शैख मंसूर भी भागने लगा, तभी महाराणा प्रताप ने तलवार म्यान में रखकर धनुष हाथ में लिया और तीर चलाया | ये तीर शैख मंसूर के कूल्हे पर लगा |
काजी खां और शैखजादे 5-6 कोस तक भागते रहे | महाराणा प्रताप की सैनिक टुकड़ी ने उनका लगातार पीछा किया | जब वे दोनों एक नाले के पास आकर रुके, तो उनका सामना एक और मेवाड़ी सैनिक टुकड़ी से हो गया |
"गाज़ी खां पर हमला"
महाराणा प्रताप की सैनिक टुकड़ी का मुकाबला गाज़ी खां बदख्शी की सैनिक टुकड़ी से हुआ
महाराणा प्रताप के हमले से गाज़ी खां बदख्शी को भागना पड़ा
"आसफ़ खां पर हमला"
महाराणा प्रताप व रामशाह तोमर की टुकड़ियों ने मिलकर मीर बख्शी आसफ खां की फौजी टुकड़ी पर हमला किया
आसफ खां व मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी भागकर मुगल फौज के दायीं तरफ खड़े सैयदों के पीछे छिप गए |
"मानसिंह पर हमला"
महाराणा प्रताप और रामशाह तोमर का सामना मानसिंह के नेतृत्व वाली कछवाहों की सैनिक टुकड़ी से हुआ
इस समय मानसिंह ने पहले तो हाथी के महावत की जगह बैठकर बड़ी बहादुरी दिखाई, लेकिन तोमर वंश के सामने मानसिंह को पीठ दिखानी पड़ी
महाराणा प्रताप की नजर मानसिंह पर पडती, तब तक वह सभी कछवाहों समेत सैयदों के पीछे जा छिपा
* अकबर के दरबारी कवि दुरसा आढा लिखते हैं
"पातल घड पतसाह री,
ऐम विधू सी आण |
जाण चढी कर बंदरां,
पोथी वेद पुराण ||"
अर्थात्
"महाराणा प्रताप ने आते ही मुगल फौज का इस तरह विध्वंस कर दिया, मानो कोई वेद पुराण की पोथी बन्दरों के हाथ लग गई हो"
* मेरे द्वारा ऊपर लिखा वर्णन पक्षपात भरा ना लगे, इसलिए नीचे युद्ध में मौजूद मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी द्वारा लिखा गया वर्णन दिया जाता है :-
"बारहा के सैयदों ने रुस्तम जैसी बहादुरी दिखाई | दोनों तरफ से कई बहादुर मारे गए | राणा कीका (राणा प्रताप) की फौज की दूसरी टुकड़ी, जिसकी कमान खुद राणा कीका ने सम्भाल रखी थी, घाटी से निकलकर घाटी के मुहाने पर खड़े काजी खां की फौजी टुकड़ी पर हमला कर दिया | राणा काजी खां की फौज में तबाही मचाता हुआ फौजी टुकड़ी के बीच तक पहुंच गया | राणा के हमले से सीकरी के शैखज़ादे भाग निकले | शैख मंसूर के पिछवाड़े एेसा सख्त तीर लगा कि ये घाव बड़े दिनों तक रहा | काजी खां एक मुल्ला होने के बावजूद बड़ी बहादुरी से टिका रहा, पर उसके दाहिने हाथ का अंगूठा कट जाने के बाद वह ये कहता हुआ भाग निकला कि 'जब दुश्मन का हमला सहने लायक न हो तब वहां से भाग जाना पैगम्बर की दी हुई तालीम है' | उधर हाकिम खां के हमले से जो फौज पहले भागी थी, वह बनास नदी पार कर भागती ही रही | राणा और रामशाह तोमर के हमले से मानसिंह के साथी राजपूतों ने भागना शुरु किया, तो आसफ खां की कमान वाली फौजी टुकड़ी भी भाग निकली और ये सब भागकर सैयदों के पीछे छिप गए | अगर इस वक्त बहादुर सैयद न होते तो हमारी फौज की बड़ी बदनामी वाली हार होती | इस वक्त मेहतर खां, जो कि चन्दावल में था, निकलकर बाहर आया और ढोल पीटकर फौज को जमाने की कोशिश की"
* अगले भाग में मेहतर खां द्वारा पीछे खड़ी मुगल फौज को आगे लाकर नतीजा बदलने, महाराणा के मामा मानसिंह सोनगरा के बलिदान व भीलों की तीन टुकड़ियों के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
No comments:
Post a Comment