Tuesday, 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 38


गोगुन्दा में कुंवर मानसिंह कछवाहा


* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 102

(420वीं पुण्यतिथि पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को शत्-शत् नमन)


23 जून, 1576 ई.

"मानसिंह का गोगुन्दा पर आक्रमण, विजय व दयनीय स्थिति"


> हल्दीघाटी युद्ध के दूसरे दिन आमेर का कुंवर मानसिंह कछवाहा शाही फौज के साथ गोगुन्दा पहुंचा

इस वक्त गोगुन्दा में महाराणा प्रताप के 20 लोग ही थे, जो कि महलों की सुरक्षा के लिए रखे गए थे

ये सभी भागने के बजाय 15,000 की फौज से लड़ने सामने आए और वीरगति को प्राप्त हुए

अब्दुल कादिर बंदायूनी इस वक्त यहीं मौजूद था

> बंदायूनी लिखता है

"हमारी फौज गोगुन्दा में राणा के मकान पर पहुंची, जहां तकरीबन 20 लोग ही थे | जैसा कि राजपूतों में रिवाज होता है कि जब कोई दूसरा रास्ता न हो तो खुल के सामने अाकर लड़ते थे | ये सभी कत्ल हुए"

"गोगुन्दा में मुगलों की स्थिति"

> मानसिंह गोगुन्दा में शाही फौज के साथ जहां ठहरा हुआ था, उसके चारों ओर उसने एक दीवार बनवा दी, जिसे घोड़े भी ना लांघ सके

मानसिंह ने ये दीवार इसलिए बनवाई क्योंकि उसे भय था कि महाराणा प्रताप कहीं उस पर अचानक हमला ना कर दे

> अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है

"मानसिंह और दूसरे अमीरों ने राणा के खौफ से गांव की चौतरफा खाई खुदवाकर इतनी ऊँची दीवार बनवा दी, जिसे सवार भी न लांघ सके | गाँव के तमाम मोहल्लों में आड़ खड़ी करवा दी | शाही फौज समेत सारे सिपहसालार कैदियों के मुवाफिक दिन काट रहे थे"
गोगुन्दा में भूख से बेहाल मानसिंह दीवार बनवाता हुआ

> गोगुन्दा में इन दिनों खाने के लिए सिर्फ आम थे | कईं दिनों तक सिर्फ आम खाने के कारण कई मुगल सैनिक बीमार पड़ गए |

> मुगल फौज को गोगुन्दा में अपने ही घोड़े काट कर खाने पड़े

> बंदायूनी लिखता है "इस इलाके में एक-एक सेर का आम होता है, पर इसमें मिठास और महक ज्यादा नहीं होती | फौजी आदमी माँस और आम खा-खाकर बीमार पड़ गए"

> मुगलों की ये दुर्दशा महाराणा प्रताप के भील सैनिकों द्वारा रसद का सामान लूटने से व गोगुन्दा के आसपास फसलें खत्म कर वीरान कर देने से हुई

> युद्ध में मारे जाने वाले सैनिकों, हाथियों व घोड़ों की सूची तैयार की जा रही थी कि तभी सैयद अहमद खान ने कहा कि

"मुर्दों की फेहरिस्त बनाने से ज्यादा जरुरी उनके लिए रसद का इन्तजाम करना है, जो जिन्दा हैं"

(मुगलों की इस दुर्दशा का ये हाल निजामुद्दीन अहमद बख्शी ने लिखा है, जो इस वक्त वहीं मौजूद था)

* अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के प्रमुख सामन्तों (युद्ध में जीवित रहने वाले व वीरगति पाने वालों के उत्तराधिकारी) के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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