Tuesday 31 January 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 30

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास


* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 94

21 जून, 1576 ई.

"हल्दीघाटी का युद्ध"

"महाराणा प्रताप व मानसिंह के बीच आमने-सामने की लड़ाई"


* युद्धभूमि में महाराणा प्रताप की नजर मुगल फौज के बीच 'मर्दाना' नामक हाथी पर सवार मानसिंह पर पड़ी | महाराणा प्रताप बिना समय गंवाए मुगल फौज को चीरते हुए मानसिंह तक पहुंचे |

महाराणा ने मानसिंह से कहा "तुमसे जहाँ तक हो सके बहादुरी दिखाओ"

चेतक ने अपने दोनों पैरे हाथी के सिर पर मारे, तभी महाराणा ने भाले से मानसिंह पर वार किया | भाला मानसिंह के महावत को चीरता हुआ निकल गया और मानसिंह हौदे में छुप गया | महाराणा प्रताप ने भाले से एक और वार किया पर भाला मानसिंह के कवच तक ही पहुंचा |

चेतक ने भी अपने पैरों से हाथी के सिर पर भरपूर प्रहार किया, परन्तु उतरते वक्त हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का पिछला पैर बुरी तरह जख्मी हो गया |

महाराणा प्रताप ने फौरन कटारी निकालकर मानसिंह पर फेंकी | मानसिंह फिर हौदे में दुबकने से बच गया, परन्तु महाराणा प्रताप को लगा कि कटारी से मानसिंह जख्मी हो चुका है, इसलिए महाराणा लौटने लगे |

"बाही राण प्रतापसी,
बख्तर में बरछी |
जाणक झींगर जाल में,
मुंह काढे मच्छी ||



* महाराणा प्रताप और मानसिंह के आमने-सामने के मुकाबले में यकिनन मानसिंह के पैर उखड़ गए थे | वह पीछे हट गया और उसकी मदद खातिर उसके भाई माधवसिंह को आना पड़ा | इस घटना को मानसिंह पर लिखे गए ग्रन्थ 'मानप्रकाश' में कुछ इस तरह घुमा-फिराकर लिखा है कि

"राजा मानसिंह के भाई माधवसिंह ने आकर राजा मान से कहा कि राजन् आप तनिक विश्राम कीजिये, इस युद्ध को मैं समाप्त करता हूं"

* अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है

"जब खलबली और कटाजञ्झ की लपटें उठ रही थीं, किस्मत की आग जल रही थी, तब कुंवर मानसिंह और राणा आमने-सामने आए और दोनों ने बड़ी बहादुरी दिखाई | ऊपर-ऊपर से देखने पर लग रहा था कि जीत दुश्मन की हो रही है, पर तभी अचानक खुदा की करामात से मदद मिली | पीछे खड़ी मुगल फौज पूरे इन्तज़ाम के साथ मैदान में आ गई और दुश्मन (राणा), जो कि बराबर ज्यादा जोर पकड़े था, उसकी हिम्मत टूट गई"

* महाराणा प्रताप का सामना मानसिंह के भाई माधोसिंह से हुआ | माधोसिंह ने महाराणा प्रताप को घेर लिया | महाराणा प्रताप पूरी तरह से मुगलों से घिरे हुए थे |

> नाथावत कछवाहा राजपूतों के मूलपुरुष नाथा कछवाहा के बेटे मनोहरदास ने जख्मी चेतक पर प्रहार कर दिया

> बंदायूनी लिखता है

"राणा कीका को माधोसिंह ने घेर लिया और राणा पर तीरों की बौछार होने लगी"

> ग्रन्थ मानप्रकाश में लिखा है कि

"महाराणा प्रताप जब युद्धभूमि छोड़ रहे थे, तब माधोसिंह ने उनको ललकारा | वह मेवाड़ी वीर भी चुनौती स्वीकार करते हुए मुड़कर आया | वीर प्रताप ने माधवसिंह और राजा मान को बाणों से ढक दिया, ठीक उसी तरह जिस तरह बादल की जलधारा भूमि को ढक देती है, परन्तु मानसिंह इन तीरों के अंधेरे को चीरकर प्रकाशमयी हुआ"


* महाराणा प्रताप बुरी तरह से जख्मी हो गए, तभी महाराणा जैसे दिखने वाले झाड़ौल के झाला मान/झाला बींदा वहां आ पहुंचे और महाराणा के छत्र, चंवर वगैरह धारण कर मुगलों को चकमा देने में सफल रहे

* महाराणा प्रताप ने लौटते समय माधोसिंह से कहा :-

"माधोसिंह, अपनी इस कायरता भरी विजय पर अधिक प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है | एकलिंग नाथ की सौगन्ध जब तक राणा प्रताप जीवित है, तब तक तुम्हें जीत का सपना तक नहीं देखने देगा | मैं जल्द ही तुम्हारी और मानसिंह की खुशियाँ छीन लूंगा | अपने ईश्वर से प्रार्थना करो कि दोबारा युद्धभूमि में सामना ना हो"

* अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध के दौरान बंदायूनी व आसफ खां के बीच हुई बातें व हाथियों की भीषण लड़ाई के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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