Saturday 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 69



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 133

"महाराणा प्रताप का सलूम्बर पर अधिकार"


> महाराणा प्रताप ने रावत कृष्णदास चुण्डावत को बम्बोरा की जागीर दी

> महाराणा प्रताप ने रावत चुण्डावत को सलूम्बर पर अधिकार करने भेजा

भोमिये सिंहा राठौड़ ने सलूम्बर के शासक को धोखे से जहर देकर मार दिया था व इस वक्त सलूम्बर की गद्दी पर बेखटके राज कर रहा था

रावत चुण्डावत ने कानोड़ रावत सारंगदेवोत के साथ मिलकर सिंहा राठौड़ को जहर देकर मरवा दिया और सलूम्बर पर कब्जा किया

1580 ई.

"बांसवाड़ा रावल प्रताप सिंह की मृत्यु"

इस वर्ष बांसवाड़ा रावल प्रताप सिंह का देहान्त हुआ

बांसवाड़ा पर इस समय महाराणा प्रताप का अधिकार था, पर मुगलों से लड़ाईंयों में व्यस्त रहने के कारण उन्होंने इस समय बांसवाड़ा के उत्तराधिकार में हस्तक्षेप नहीं किया

रावल प्रताप सिंह के कोई पुत्र नहीं था, तब बांसवाड़ा के सर्दार मानसिंह चौहान ने रावल प्रताप सिंह के दासीपुत्र मानसिंह को रावल की उपाधि देकर बांसवाड़ा का मालिक बना दिया

मानसिंह चौहान की मदद से रावल मानसिंह बांसवाड़ा पर राज करने लगा

"डूंगरपुर पर महाराणा प्रताप का अधिकार"

इस वर्ष डूंगरपुर रावल आसकरण की मृत्यु हुई

महाराणा प्रताप ने रावल आसकरण के पुत्र साहसमल को डूंगरपुर की राजगद्दी पर बिठाया

साहसमल ने महाराणा की अधीनता स्वीकार कर रखी थी, इसलिए डूंगरपुर महाराणा प्रताप के अधीन हुआ

महारावल आसकरण की रानियों में चौहान वंश की महारानी प्रेमलदेवी के पुत्र साहसमल थे | कईं जगह इनका नाम सैंसमल भी लिखा है | साहसमल ने महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया |

* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा मालवा के मुगल थानों में लूटमार व ताराचन्द कावडिया की जीवन रक्षा के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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