Saturday, 23 September 2017

महाराणा प्रताप (राणा कीका) के इतिहास का भाग - 68



* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 132

1580 ई.


"संघर्ष के बीच मेवाड़ में अकाल"

* इस वर्ष मेवाड़ में अकाल पड़ गया, जिससे मेवाड़ की आर्थिक स्थिति व जनजीवन पर प्रभाव पड़ा

* महाराणा प्रताप शाहबाज खां से लगातार संघर्ष के बाद राणपुर (वर्तमान में रणकपुर) पहुंचे और वहां से मेवाड़ की सीमा पार कर ईडर के चूलिया गांव में पधारे

"दानवीर भामाशाह की भेंट"

> ये महाराणा प्रताप के बचपन के मित्र थे | इनका जन्म 1547 ई. में ओसवाल परिवार में भारमल के यहां हुआ | ये व्यापारी थे | मेवाड़ के राजकोष का उत्तरदायित्व इन्होंने व इनके पुरखों ने कुछ पीढियों से सम्भाला |

> जब महाराणा प्रताप व मेवाड़ की आर्थिक स्थिति डगमगा गई, तब चूलिया गांव में महाराणा प्रताप की भेंट भामाशाह कावडिया व इनके भाई ताराचन्द कावडिया से हुई

> 25 लाख का धन व 20 हजार अशर्फियां महाराणा प्रताप को भेंट कर भामाशाह व ताराचन्द ने अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा दिया

(कुछ इतिहासकार इसे दान ना मानकर राणा कुम्भा व राणा सांगा के समय का संचित कोष मानते हैं, जो कि सही नहीं है | दरअसल भामाशाह व ताराचन्द ने मालवा को लूटकर ये धन जमा किया था | भामाशाह को दानवीर इसलिए कहा गया क्योंकि इस लूटे हुए धन के साथ-साथ उन्होंने खुद की भी सारी सम्पत्ति दी थी)

> महाराणा प्रताप ने महासहाणी रामा के स्थान पर भामाशाह को प्रधान बना दिया

रामा कायस्थों के 'महासहाणी' कुल के थे

"भामो परधानो करै, रामो कीधो रद्द |
धरची बाहर करणनूं, मिलियो आय मरद्द ||"


(ये दोहा उसी जमाने का है व इसमें भामाशाह को 'दानवीर' नहीं, बल्कि 'मर्द' कहा गया है जो कि उनकी मालवा लूटने की बहादुरी की तरफ संकेत करता है)

> भामाशाह की हवेली चित्तौड़ दुर्ग में तोपखाने के मकान के सामने वाले कवायद के मैदान के पश्चिमी किनारे के मध्य में थी, जिसको महाराणा सज्जनसिंह ने कवायद का मैदान तैयार कराते समय थोड़ी तुड़वा दी |
चित्तौड़ दुर्ग की तलहटी में स्थित भामाशाह हवेली

* इसी वर्ष जैसलमेर के शासक महारावल भीम ने महाराणा प्रताप के पास अपनी बहन के लिए विवाह प्रस्ताव भेजा, जिसे महाराणा ने स्वीकार कर विवाह किया

(हालांकि किसी भाट द्वारा लिखी इस वैवाहिक घटना की सत्यता का कोई प्रमाण नहीं है)

* अगले भाग में महाराणा प्रताप के सलूम्बर पर अधिकार, बांसवाड़ा व डूंगरपुर रावल के देहान्त के बारे में लिखा जाएगा

:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

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