* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 134
1580 ई.
"ताराचन्द को गोडवाड़ व सादड़ी की जिम्मेदारी सौंपना"
> महाराणा प्रताप ने गोडवाड़ पर अधिकार कर वहां का उत्तरदायित्व भामाशाह कावडिया के भाई ताराचन्द कावडिया को सौंपा
> महाराणा प्रताप ने ताराचन्द को सादड़ी का हाकिम भी बना दिया
"ताराचन्द का ज़ख्मी होना"
महाराणा प्रताप ने मालवा को लूटने के लिए ताराचन्द को मालवा में रामपुरा की तरफ भेजा
मालवा में बस्सी नामक स्थान पर ताराचन्द का मुकाबला मुगल सेनापति शाहबाज खां से हो गया
ताराचन्द घोड़े से गिर गए व बुरी तरह ज़ख्मी हो गए
बस्सी के राव साईंदास देवड़ा ताराचन्द को अपने घर ले गए व उनका उपचार किया
"महाराणा प्रताप द्वारा मालवा में कार्यवाही व ताराचन्द की जीवनरक्षा"
महाराणा प्रताप को जब ताराचन्द के ज़ख्मी होने का पता चला, तो उन्होंने थोड़े बहोत सैनिकों के साथ फौरन मालवा कूच किया
मालवा पर मुगलों का अधिकार था, जिस वजह से महाराणा प्रताप का वहां जाना लगभग असम्भव था
पर महाराणा प्रताप ताराचन्द तक पहुंचने में सफल हुए और मालवा से निकले
मालवा से मेवाड़ के रास्ते में जितने भी मुगल थाने आए, महाराणा प्रताप ने उनको न सिर्फ हटाया, बल्कि मालवा के सबसे बड़े शाही थाने दशोर (वर्तमान में मन्दसौर) को लूटकर तहस-नहस करते हुए ताराचन्द को सुरक्षित चावण्ड ले आए
"रहीम का महाराणा के विरुद्ध कूच करना"
महाराणा प्रताप द्वारा की गई इस लूटमार के बाद अकबर ने अपने नवरत्नों में से एक व बैरम खां के बेटे अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना को मालवा भेजा
* अगले भाग में अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के असफल मेवाड़ अभियान के बारे में लिखा जाएगा
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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