* मेवाड़ के इतिहास का भाग - 123
"कुम्भलगढ़ का युद्ध"
नवम्बर-दिसम्बर, 1577 ई.
"अकबर द्वारा कुम्भलगढ़ के लिए एक और फौज भेजना"
कुम्भलगढ़ दुर्ग पर अधिकार करने के लिए शाहबाज खां ने अकबर को संदेशा भेजकर शैख इब्राहिम फतेहपुरी के नेतृत्व में एक सेना और मंगवाई
शैख इब्राहिम फतेहपुरी को उसकी फौज समेत अजमेर-मेवाड़ की घाटियों पर तैनात किया
1578 ई.
"महाराणा प्रताप का आदेश"
महाराणा प्रताप ने आम लोगों में हुक्म जारी करवाया कि "सभी लोगों को कुम्भलगढ़ से दूर जाना होगा | जो कोई भी कुम्भलगढ़ के आसपास मिला उसे मृत्युदण्ड दिया जावेगा |"
कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप ने जब कुम्भलगढ़ के पास एक चरवाहे को भेड़ें चराते हुए देखा, तो उसे मृत्युदण्ड दिया गया व उसके शव को पेड़ पर लटका दिया गया
वीरविनोद में कविराज श्यामलदास भी मानते हैं कि महाराणा प्रताप के आदेश बड़े सख्त हुआ करते थे
"शाहबाज खां द्वारा दुर्ग जीतने के प्रयास"
> शाहबाज खान ने नाडोल-केलवाड़ा का रास्ता बन्द किया व कुम्भलगढ़ पहुंचा
"मेवाड़ आगम धाम दुग्ग पहार घेरन फेर को |
भटसेन साजरु शाहबाज विरोध कुम्भलमेर को ||"
> शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ दुर्ग को तीन तरफ से 6 माह तक घेरे रखा
इस दौरान शाहबाज खां ने 4 बार दुर्ग पर हमला किया और चारों ही बार महाराणा प्रताप ने अपने साथी राजपूतों समेत शाहबाज खां की फौज को करारी शिकस्त दी
आखिरकार शाहबाज खां ने षड्यन्त्रों का रास्ता इख्तियार किया
> कुम्भलगढ़ दुर्ग में पानी का एकमात्र विशाल स्त्रोत था :- नोगन का कुंआ
आबू के एक विश्वासघाती राजपूत देवराज देवड़ा ने शाहबाज खां के कहने पर नोगन के कुंए में मरे हुए जहरीले साँप फेंक दिए
पानी का एकमात्र स्त्रोत भी खराब हो जाने के कारण महाराणा प्रताप को दुर्ग छोड़ने पर विचार करना पड़ा
(इस घटना का जिक्र उसी जमाने की एक ख्यात 'रावल राणा री बात' में किया गया है | कर्नल जेम्स टॉड ने भी इस घटना का हाल लिखा है)
> कुम्भलगढ़ दुर्ग में एक विशाल तोप थी, जो अचानक फट गई | इससे राजपूतों की रसद व सैनिक सामग्री जलकर राख हो गई |
कुछ ख्यातों के अनुसार शाहबाज खां ने दुर्ग में किसी विश्वासघाती के जरिए बारुद में शक्कर मिलवा दी थी, जिससे तोप फट गई
* कुम्भलगढ़ का युद्ध... अगले भाग में जारी...
:- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
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